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Sunday, September 21, 2014

गायत्री मंत्र

गायत्री मंत्र का तत्वज्ञान
गायत्री की २४ शक्ति
गायत्री की २४ अक्षर
गायत्री की २४ कलाएँ
गायत्री की २४ मातृकाएँ
गायत्री के २४ प्रत्यक्ष देवता
गायत्री की २४ मस्तिष्कीय शक्ति
तात्विक विवेचन
गायत्री के २४ ऋषि
गायत्री के २४ छन्द
गायत्री के २४ अवतार
गायत्री के २४ रहस्य
गायत्री की २४ मुद्रायें
२४ अक्षरों से २४ तत्व
शरीरस्थ २४ ग्रंथियाँ और उनकी शक्तियाँ
२४ अक्षरों से सम्बन्धित २४ अनुभूतियाँ
गायत्री के २४ अक्षर २४ बीज मंत्र
गायत्री चक्र
समस्त विद्याओं की भण्डागार- गायत्री महाशक्ति
ॐ र्भूभुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्
गायत्री संसार के समस्त ज्ञान- विज्ञान की आदि जननी है ।। वेदों को समस्त प्रकार की विद्याओं का भण्डार माना जाता है, वे वेद गायत्री की व्याख्या मात्र हैं ।। गायत्री को 'वेदमाता' कहा गया है ।। चारों वेद गायत्री के पुत्र हैं ।। ब्रह्माजी ने अपने एक- एक मुख से गायत्री के एक- एक चरण की व्याख्या करके चार वेदों को प्रकट किया ।।
'ॐ भूर्भवः स्वः' से- ऋग्वेद,
'तत्सवितुर्वरेण्यं' से- यर्जुवेद,
'भर्गोदेवस्य धीमहि' से- सामवेद और
'धियो योनः प्रचोदयात्' से अथर्ववेद की रचना हुई ।।
इन वेदों से शास्त्र, दर्शन, ब्राह्मण ग्रन्थ, आरण्यक, सूत्र, उपनिषद्, पुराण, स्मृति आदि का निर्माण हुआ ।। इन्हीं ग्रन्थों से शिल्प, वाणिज्य, शिक्षा, रसायन, वास्तु, संगीत आदि ८४ कलाओं का आविष्कार हुआ ।। इस प्रकार गायत्री, संसार के समस्त ज्ञान- विज्ञान की जननी ठहरती है ।। जिस प्रकार बीज के भीतर वृक्ष तथा वीर्य की एक बूंद के भीतर पूरा मनुष्य सन्निहित होता है, उसी प्रकार गायत्री के २४ अक्षरों में संसार का समस्त ज्ञान- विज्ञान भरा हुआ है ।। यह सब गायत्री का ही अर्थ विस्तार है ।।

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