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Wednesday, January 28, 2015

सनातन के धर्म का कोई अंत नहीं इसे जितना जानना चाहोगे उतना ही विस्तृत होता जाता है, सनातन धर्म में पृथ्वी का सेण्टर अर्थात मध्य भी बताया गया है परन्तु आज के विज्ञान को पृथ्वी का मध्य नहीं मालूम पर सनातन धर्म कहता है की पृथ्वी का मध्य इलावृत देश है जिसे जम्ब्भू द्वीप भी कहते है जिसका आकार आधे चन्द्रमा के सामान है इसके मध्य में मेरु पर्वत है जो वैगर धुय और अग्नी के सामान है जो देखने पर स्वच्छ सीसे के सामान है अर्थात दिखाए नहीं देता परन्तु इस मेरु पर्वत के आर-पार कोई भी रोशनी जा नहीं सकती चाहे वह सूर्य या नक्षत्र की ही क्यों ना रोशनी हो यही इसका प्रमाण है

इस समय यह मेरु पर्वत और इलावृत देश को बरमूडा के नाम से जाना जाता है जिसका आकार चन्द्रमा के सामान है और ठीक उसके मध्य में मेरु रूपी आज का BLACK HOLE है आज का जो BLACK HOLE है वह विष्णु जी का नाभी है जिसे ठीक ऊपर चौरासी हजार योजन अर्थात 1092000 KM ऊपर ३२ हजार योजन अर्थात 416000 KM विस्तृत प्याले के आकार में वह मेरु के शिखर पर फैला हुआ है

यही से सारे पृथ्वी के बारे में बताया गया है जिसे दिशा के द्वारा समझाया गया है सनातन धर्म में हर चीज को करने का एक सिद्धांत दिया गया है अगर आप पुराण के वक्ता है तो पुराण वक्ता का मुख उत्तर दिशा में होना चाहिय और सुनाने वाले का मुख दक्षिण दिशा में इसी तरह अगर किसी और धर्म के प्रवक्ता है तो वाचक का मुख पूर्व के तरफ और श्रोता का मुख पच्छिम के तरफ होना चाहिय

अकाशा गंगा मेरु पर्वत के ऊपर से चार भागों में विभाजित होकर पृथ्वी पर गिरती है जिसे आजकल बरमूडा का ट्रैंगल कहा जाता है जिसमे गिराने वाले कोई भी जीव वापिस नहीं मिलता 
पृथ्वी के सबसे अंतिम सिरा लोकालोक पर्वत है जिसे पुष्कर द्वीप भी कहते है जहा मनुष्यों को पहुचना अत्यंत कठिन है, अगर पहुंच भी गए तो वहा तप करना अत्यंत कठिन है इससे भी अत्यंत कठिन वहा दान देना है यही पर ज्येष्ठ पुष्कर, मध्य पुष्कर और कनिष्ट पुष्कर है जिसे आजकल Ni'ihau iceland निहओ आइजलैंड कहते है इसके आगे ब्रह्मा का अण्डकटाह है जो सभी और से अन्धेरा है इसमें कोई भी जीव जंतु नहीं पाये जाते ठीक इसी के ऊपर सूर्य की स्थिति है जिसे आजकल Ka'ula iceland कउला आइजलैंड कहते है यही तक पृथ्वी का विस्तार है।।।   
                शेष: पुन:
      ~(कुछ और जानकारी हो तो बताएं)
            संकलन:श्रीव्रजेशभाई

Tuesday, January 13, 2015

दान की महिमा

[7:11AM, 14/01/2015] Gopal Bhatt: इस साल मकर सक्रांति का वाहन गज (हाथी)है उपवाहन गदर्भ है जिन्हो ने लाल वस्त्र पहने हुए हे इनकी जाती पशु हे गोरोचन का तीलक कीया है  वो बेठी हुइ है दुध पी रही हे बैल्व पुष्प जिन्हो ने धारण कीया है गोमेद इन्का आभुषण है  वार का नाम मंदाकीनी है नक्षत्र का नाम महोदरी है सामुदाय मुहुर्त 30 साम्यार्घ है
            पुर्व मेसे आते  हुवै पश्चीम की ओर जा रही हे  जीस कारण पुर्व ओर वायव्य के लोगो को   सुखाकारी मीले  सक्रांति के  लिए एसा माना जाता है की  जिस जिस चिजो के एवम व्यकित के साथ इन्का  सबंध  होता है वो चीज महेंगी होने के  साथ  इन व्यकित को त्रास  होता है  30 मुहुर्त की सक्रान्ती होने के कारण इस  साल बारीष अच्छा गीरेगा  हाथी गदर्म जेसे पशु मे रोग हो सकता है गेहु के एवम  सिसा के व्यवसाय मै कमी आये तांबा ओर लाल धातु के भाव मे बढोतरी आये पशु ओ की अनेक जाती  लुप्त होती दीखे  इन पशु ओ के लीये सामाजीक जागृती लाना संभव है गौवंश बचाने के  लिए  बचाव अभीयान जरुरी रहेगा वयोवृध्ध वयस्को के लीए अपनी तकेदारी रखना जरुरी रहेगा
इन सक्रान्ती काल मै तील का ज्यादा महत्व होने के कारण खाने मे तील का उपयोग तिल का हवन  तिल का दान तिल मिश्रीत जल का स्नान  तांबै का बर्तन का दान गाय माता को गो ग्रास नया वस्त्र सीजन का फल बैर का दान साबुत हरे मुंग एवम चावल  का दान  ऐवम शिव पुजन और  सुर्य देव को दुध का अर्घ्य पुजन  श्रेष्ठ रहेगा
इस साल सुर्यनारायणदेव मकर राशी मे 14 तारीख को  शाम 7 बजकर26मीनीट को प्रवेश करते है तो
        दान का पुण्यकाल तारीख 15 को सुर्योदय से लेकर   सुर्यास्त तक रहेगा

राशी के अनुसार
        मीथुन कन्या एवम कुंभ राशी के जातक को
         घी,शक्कर  सफेद तल सफेद कापड  एवम चांदी का दान करना
        कर्क वृश्चिक और मीन राशी के जातक को
         काला तिल स्टील का बर्तन ऑर काले वस्त्र की जोडी का दान
        मेष सींह एवम मकर  वाले जातक को
          साबुत गेहु  गुड लाल कापड  तील के साथ तांबे के बर्तन की जोड
         वृषभ धन एवम तुला राशी के जातक को
           चणे की दाल पीला कापड एवम पीतांबर का दान  साथ मे पीतल के थाली कटोरी एवम लोटा के साथ का पद दान  करना श्रेष्ठ रहेगा
सक्रांत काल मे दीया हुआ दान  सर्व श्रेष्ठ माना गया है

नमामी देवी नर्मदे
[7:13AM, 14/01/2015] Gopal Bhatt: दान की महिमा
तपः परं कृतयुगे त्रेतायां ज्ञानमुच्यते।
द्वापरे यज्ञमेवाहुर्दानमेकं कलौ युगे।।
मनुस्मृति(१।८६)-के अनुसार सत्ययुगमें तप, त्रेतामें ज्ञान, द्वापरमें यज्ञकर्म तथा कलियुगमें केवल एक कार्य-दान ही श्रेष्ठ हैं।अतएव कलियुगमें मनुष्य को दान अवश्य करना चाहिए। कलियुगमें दान श्रेष्ठ हैं

Monday, January 12, 2015

શુભ વિચાર

આખો સાગર નાનો ગાગર લાગે 
                       જ્યારે મ ને કાનો માત્ર લાગે  

Friday, January 2, 2015

यज्ञ में दक्षिणा का महत्व


आजकल कई लोग अपनी दुकान चलाना चाहते है वह लोग समझाते है कि हम दक्षिणा नहीं लेते। अरे! जो भिक्षु ,फ़क़ीर है वह मुफ्त मै सलाह देता है और वकील Fees लेता है । दक्षिणा नहीं लेने से तुम अधिकारी नहीं बन जाते । गीता के १७ वें  अध्याय के १३ श्लोक में तो कहा  
 विधिहीनमसृष्टान्नं मन्त्रहिनमदक्षिणम् । 
श्रद्धाविरहितं   यज्ञं   तामसं   परिचक्षते  ॥ 
शास्त्र विधि से हीन, अन्नदान से रहित, बिना मन्त्रोके, दक्षिणाके और बिना श्रद्धाके किये जानेवाले यज्ञको तामस यज्ञ कहते है 
 जो यज्ञ दक्षिणा से रहित होता है, वह तामसी यज्ञ है। आजकल तो कोई भी आदमी यज्ञ करवाने पहुँच जाता है। हम दक्षिणाका लोभ नहीं करते । ब्राह्मण तो तगडी दक्षिणा लेते है इस सोच से कई ब्राह्मण दक्षिणा नहीं लेते है । याद रखिए 
दक्षिणारहितं यज्ञो अजास्तनं यथा । 
आपने बकरी को देखा है? संस्कृत में  बकरी को कहते है अजा, उसके गले में थन सा होता है । पीछे  जो थन है उसमें दूध आता है । जो गले में रहते है उस पर आप लटक भी जाओगे तो भी दूध की एक बून्द नहीं निकलेगी । वह जो दक्षिणा रहित यज्ञ होता है अजास्तनं यथा । वह बकरीके गलेके स्तनकी भाँति है । वह यज्ञ मात्र दिखने वाला है फल देने वाला नहीं है । 
            पूज्यपाद चन्द्रशेखरपण्डितजी महाराज