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Friday, October 24, 2014

नाद

"नाद"
(व्यक्ति में हीर है हीै, लेकिन उसको तरासने वाला कोई सद्गुरु मिल जाए।) तो वह हीरा बन जाता है।
       {हीरा-dimond}
किसी खदान के भीतर अत्यंत गहराई में पड़े हुए हीरे को अपने आप को क्या और कैसा मानना चाहिये ?

क्या वह हीरा यह माने कि वह हीरा बनने की पात्रता रखता है ?

क्या हीरे को अपने ऊपर पड़ी हुई पहाड़ सरीखी बुराई रुपी मिटटी-पत्थरों को अपनी अशुद्धि मान कर अपने आप को बीज रूप मानना चाहिये ?

फिर उसे हटाने में अपना समय खर्च करना चाहिये ? 

जब पहाड़ सरीखी बुराई रुपी मिटटी-पत्थर नष्ट हो जाएँ, तभी उसे अपने को बीज से पेड़ रुपी शुद्ध परमात्मा मानना चाहिये ?

या फिर उस हीरे को यह मानना चाहिए कि वह आज और अभी और हमेशा से हीरा ही है । उसके हीरक-द्रव्य में किसी भी तरह की अशुद्धि का प्रवेश न पहले था, न अभी है और न ही आगे कभी भी होगा ।

हे पुण्यवंत, वह हीरा आप ही हो । आपके आत्मा में किसी भी तरह की अशुद्धि का प्रवेश न पहले था, न अभी है और न ही आगे कभी भी होगा । इस बात को स्वीकार करते ही आपका मुक्ति-पथ की ओर गमन शुरू हो जाएगा।।
  *एक शेर अर्ज करता हूँ।
जहर भी उसका और नूर भी उसका।
फिर न देखे तो कुसूर किसका?*
          *श्रीव्रजेशभाई*
            "कृतार्थोहं"