"नाद"
(व्यक्ति में हीर है हीै, लेकिन उसको तरासने वाला कोई सद्गुरु मिल जाए।) तो वह हीरा बन जाता है।
{हीरा-dimond}
किसी खदान के भीतर अत्यंत गहराई में पड़े हुए हीरे को अपने आप को क्या और कैसा मानना चाहिये ?
क्या वह हीरा यह माने कि वह हीरा बनने की पात्रता रखता है ?
क्या हीरे को अपने ऊपर पड़ी हुई पहाड़ सरीखी बुराई रुपी मिटटी-पत्थरों को अपनी अशुद्धि मान कर अपने आप को बीज रूप मानना चाहिये ?
फिर उसे हटाने में अपना समय खर्च करना चाहिये ?
जब पहाड़ सरीखी बुराई रुपी मिटटी-पत्थर नष्ट हो जाएँ, तभी उसे अपने को बीज से पेड़ रुपी शुद्ध परमात्मा मानना चाहिये ?
या फिर उस हीरे को यह मानना चाहिए कि वह आज और अभी और हमेशा से हीरा ही है । उसके हीरक-द्रव्य में किसी भी तरह की अशुद्धि का प्रवेश न पहले था, न अभी है और न ही आगे कभी भी होगा ।
हे पुण्यवंत, वह हीरा आप ही हो । आपके आत्मा में किसी भी तरह की अशुद्धि का प्रवेश न पहले था, न अभी है और न ही आगे कभी भी होगा । इस बात को स्वीकार करते ही आपका मुक्ति-पथ की ओर गमन शुरू हो जाएगा।।
*एक शेर अर्ज करता हूँ।
जहर भी उसका और नूर भी उसका।
फिर न देखे तो कुसूर किसका?*
*श्रीव्रजेशभाई*
"कृतार्थोहं"