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Friday, January 2, 2015

यज्ञ में दक्षिणा का महत्व


आजकल कई लोग अपनी दुकान चलाना चाहते है वह लोग समझाते है कि हम दक्षिणा नहीं लेते। अरे! जो भिक्षु ,फ़क़ीर है वह मुफ्त मै सलाह देता है और वकील Fees लेता है । दक्षिणा नहीं लेने से तुम अधिकारी नहीं बन जाते । गीता के १७ वें  अध्याय के १३ श्लोक में तो कहा  
 विधिहीनमसृष्टान्नं मन्त्रहिनमदक्षिणम् । 
श्रद्धाविरहितं   यज्ञं   तामसं   परिचक्षते  ॥ 
शास्त्र विधि से हीन, अन्नदान से रहित, बिना मन्त्रोके, दक्षिणाके और बिना श्रद्धाके किये जानेवाले यज्ञको तामस यज्ञ कहते है 
 जो यज्ञ दक्षिणा से रहित होता है, वह तामसी यज्ञ है। आजकल तो कोई भी आदमी यज्ञ करवाने पहुँच जाता है। हम दक्षिणाका लोभ नहीं करते । ब्राह्मण तो तगडी दक्षिणा लेते है इस सोच से कई ब्राह्मण दक्षिणा नहीं लेते है । याद रखिए 
दक्षिणारहितं यज्ञो अजास्तनं यथा । 
आपने बकरी को देखा है? संस्कृत में  बकरी को कहते है अजा, उसके गले में थन सा होता है । पीछे  जो थन है उसमें दूध आता है । जो गले में रहते है उस पर आप लटक भी जाओगे तो भी दूध की एक बून्द नहीं निकलेगी । वह जो दक्षिणा रहित यज्ञ होता है अजास्तनं यथा । वह बकरीके गलेके स्तनकी भाँति है । वह यज्ञ मात्र दिखने वाला है फल देने वाला नहीं है । 
            पूज्यपाद चन्द्रशेखरपण्डितजी महाराज