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Saturday, November 15, 2014

ज्योतिषशास्त्रका महात्म्य

छन्दः पादौ तु वेदस्य हस्तौ कल्पोथ पठ्यते । 
ज्योतिषामयनं   चक्षुर्निरुक्तं     श्रोत्रमुच्यते  ॥ 
शिक्षा घ्राणं तु वेदस्य मुखं व्याकरणं स्मॄतम् । 
तस्मात् साङ्गमधीत्यैव ब्रह्मलोके महीयते ॥ 
वेदरूपी पुरुषके छन्दशास्त्र पैर है, दोनों हाथ कल्प है,ज्योतिषशास्त्र नेत्र है, शिक्षाको वेदकी नासिका तथा मुखको व्याकरण कहा गया है, अतः वेदांगोके ज्ञानके साथ ही वेदका अध्ययन करनेवाला ब्रह्मलोकमें प्रतिष्ठा प्राप्त करता है । (पाणिनीय शिक्षा ४१ - ४२ )