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Tuesday, May 17, 2011
कलिसंतरनोपनिषद
शान्ति पाठ
ॐ सह नाववतु | सह नौ भुनक्तु | सह वीर्य करवावहे | तेजस्वि नावधीतमस्तु | मा विद्विषा वहे |
ॐ शान्ति : ! शान्ति : !! शान्ति : !!!
"हरे राम " आदि सोलह नामोंके मंत्र का अद्भुत महात्म्य
हरी : ॐ || द्वापरान्ते नारदो ब्रह्माणं जगाम कथं भगवन गां पर्यटन कलिं संतरेयमिति | स होवाच ब्रह्मा साधू पृष्टो स्मी सर्व श्रुतिरहस्यं गोप्यं तच्छ्र्णु येन कलि संसारं तरिष्यसि | भगवत आदिपुरुषस्य नारायणस्य नामोच्चारण मात्रेण निर्धूत कलिर्भवती | नारद : पुनः पप्रच्छ तन्नाम किमिति | स होवाच हिरण्यगर्भ :| हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे | हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे || १ || इति षोडशकं नाम्नां कलि कल्मषनाशनम |नात: परतरोपाय: सर्व वेदेषु दृश्यते ||१ || इति षोडशकलावृतस्य जिवस्यावरणविनाशनम | ततः प्रकाशते परं ब्रहम मेघापाये रविरश्मिमण्डलीवेति | पुनर्नारद : पप्रच्छ भगवन को अस्य विधिरिति | तं होवाच नास्य विधिरिति | सर्वदा शुचिरशुचिर्वा पठन्ब्रहमणः सलोकताम समिपताम सरुपताम सायुज्यतामेति | यदास्य षोडशकस्य सार्धत्रिकोटीर्जपती तदा ब्रहमहत्याम तरति | तरति वीरहत्याम |स्वर्णस्तेयात्पूतो भवति | पितृदेवमनुष्याणा मपकारात्पूतो भवति | सर्वधर्मपरित्याग पापा त्सध्य: शुचितामाप्नुयात | सद्यो मुच्यते सद्यो मुच्यते इत्यु पनिषत|| ॐ शान्ति :|| हरि: ॐ तत्सत ||
हरि : ॐ | द्वापर के अंतमे नारदजी ब्रह्माजी के पास गये और बोले - भगवन ! में भूलोक में पर्यटन करता हुआ किस प्रकार कलि से त्राण पा सकता हु ? ब्रह्माजी बोले - वत्स !तुमने मुझसे आज अच्छी बात पूछी हे | समस्त श्रुतियोका जो गोपनीय रहस्य हे उसे सुनो - जिससे कलियुगमे भवसागर को पर कर लोगे | भगवान आदिपुरुष नारायण के नामोच्चारणमात्रसे मनुष्य कलि के दोषों का नाश कर डालता हे | नारदजी ने फिर पूछा - वह कौन - सा नाम हे ? हिरण्यगर्भ ब्रहमाजी ने कहा --
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे |
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ||
ये सोलह नाम कलि के पापोंका नाश करने वाले हे | इससे श्रेष्ट कोई दूसरा उपाय सारे वेदोमे भी नहीं देखने में आता |इसके द्वारा षोडश कलाओसे आवृत जीव के आवरण नष्ट हो जाते हे | तत्पश्चात जेसे मेघ के विलीन होने पर सूर्य की किरणे प्रकाशित हो उठती हे , उसी प्रकार परब्रहम का स्वरुप प्रकाशित हो जाता हे | फिर नारदजी ने पूछा - भगवन | इसके जप की क्या विधि हे ? ब्रहमाजी ने उनसे कहा - इसकी कोई विधि नहीं हे | पवित्र हो या अपवित्र -इस मंत्र का निरंतर जप करने वाला सालोक्य , सामीप्य , सारुप्य और सायुज्य -चारो प्रकार की मुक्ति प्राप्त करता हे | जब साधक इस सोलह नामोवाले मंत्र के साढ़े तीन करोड़ जप कर लेता हे , तब वह ब्रह्महत्या के दोष को पार कर जाता हे | वीर हत्या के पापसे तर जाता हे |स्वर्ण चोरी के पापसे छुट जाता हे | पितर,देवता और मनुष्यों के अपकार के दोष से भी छुट जाता हे | सब धर्मो के परित्याग के पापसे तत्काल ही पवित्र हो जाता हे | शीघ्र ही मुक्त हो जाता हे ,शीघ्र ही मुक्त हो जाता हे
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