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Friday, February 20, 2015

चाणक्यनीति

सानंदं सदनं सुता: च सुधिय: कान्ता प्रियं भाषते
सन्मित्रं सुधनं स्वयोषितिरति: आज्ञापरा: सेवका: ।
आतिथ्यं शिवपूजनं प्रतिदिनं मिष्टान्नपानं गृहे
साधो: संगमुपासते हि सततं धन्यो गृहस्थाश्रम: ॥

                (चाणक्यनीति)

आनंददायक घर, बुद्धिशाली संतान , मीठा बोलनेवाली पत्नी , अच्छे दोस्त , पवित्र धन , प्रियतमा पत्नी आज्ञापालक नौकर , आतिथ्य , प्रभु भक्ति , सात्विक भोजन और सत्संग जीनके जीवन में हो उनका गृहस्थाश्रम धन्य है ।
       ।। गोपाल भट्ट ।।