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Saturday, December 20, 2014

સંત વાણી

માનવ નડે છે માનવી ને 


માનવ નડે છે માનવી ને, મોટો થયા પછી
ચાવી મળે ગુનાઓની, જ્ઞાની થયા પછી…
માનવ નડે છે માનવી ને…
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માતા-પિતાની ગોદમાં , મમતા હતી ઘણી
બદલી ગયો એ પરણી ને, યૌવન મળ્યા પછી…
માનવ નડે છે માનવી ને…
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પ્રગતિ જીવનની કરવા, ભાઈ ભણતર ભણી ગયો
પડતી હવે તે નોકરી, અનુભવ કર્યા હવે પછી…
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માનવ નડે છે માનવી ને, મોટો થયા પછી
ચાવી મળે છે ગુનાઓની, જ્ઞાની થયા પછી
માનવ નડે છે માનવી ને …
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ગાતો હતો તું ગીત, કાયમ પ્રભુ તણા
ભૂલી ગયો એ ભાવના, પૈસો થયા પછી…
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માનવ નડે છે માનવી ને, મોટો થયા પછી
ચાવી મળે છે ગુનાઓની, જ્ઞાની થયા પછી
માનવ નડે છે માનવી ને …
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નમતો હતો તું સર્વ ને, નિર્ધન પણા મહીં
જગડા હવે કરે બધે, કૃપા મળ્યા પછી…
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માનવ નડે છે માનવી ને, મોટો થયા પછી
ચાવી મળે છે ગુનાઓની, જ્ઞાની થયા પછી
માનવ નડે છે માનવી ને …
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હું પ્રભુ બની હવે, ભાઈ પૂજાવું છું ઘણે
આપ્ કહે છે આપની, સિદ્ધિ મળ્યા પછી…
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સાધનાઓ ખૂબ કીધી, નાદિર કહે આ વિશ્વમાં
માનવી ને મેં કદી, પ્રભુ થતાં જોયા નથી …
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માનવ નડે છે માનવી ને, મોટો થયા પછી
ચાવી મળે છે ગુનાઓની, જ્ઞાની થયા પછી
માનવ નડે છે માનવી ને …

સંત વાણી

મારી મમતા મરે નહીં એનું મારે શું કરવું…
મારી મમતા મરે નહીં એનું મારે શું રે કરવું વાલીડો છે દીનનો દયાળ‚

મારું ચિત્ત રે ચડાવ્યું સંતો ચાકડે‚ થિર નહીં થાણે રે લગાર…

મમતા મરે નૈં એનું મારે શું રે કરવું…

જોગીના સ્વરૂપ ધરીને મેં જોયું‚ પેર્યો મેં તો ભગવો રે ભેખ‚

એટલા જોગે રે મારું મન થિર નૈં‚ જોવો મારે જોગેસરનો દેશ…

મમતા મરે નૈં એનું મારે શું રે કરવું…

એવા રાજાનું સ્વરૂપ ધરીને મેં જોયું‚ સંતો ! મારે ધનનો નહીં પાર રે

એટલા ધને મારું મન થિર નો થિયું લૂંટયો મેં સઘળો સંસાર રે….

મમતા મરે નૈં એનું મારે શું રે કરવું…

ગુરુ ! મેં તો પંડિતનું રૂપ ધરી જોઈ લીધું‚ સંતા ! હું તો ભણ્યો વેદ ને પુરાણ રે

એટલી વિદ્યાએ મારું મન થિર નો થિયું‚ કીધા મેં પેટને માટે પાપ રે…

મમતા મરે નૈં એનું મારે શું રે કરવું…

એવી છીપનું સ્વરૂપ ધરીને મેં જોયું‚  કીધો મે તો મધદરિયે વાસ રે‚

એટલા જળે મારું મન થિર નો થિયું‚ લાગી મને કાંઈ સુવાંતુંની આશ રે…

મમતા મરે નૈં એનું મારે શું રે કરવું…

મારાં ચિત્ત રે ચડાવ્યા સંતો ! ચાકડે‚  થિર નહીં થાણે રે લગાર

કાજી રે મામદશાની વીનતી‚ સુણો તમે સંત સુજાણ‚ સુણી લેજો ગરીબનિવાજ…

મમતા મરે નૈં એનું મારે શું રે કરવું…

Saturday, November 29, 2014

श्रीसूर्याष्टकम्

॥श्रीसूर्याष्टकम्॥

साम्ब उवाच – आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर ।
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तु ते ॥१॥

सप्ताश्व रथमारूढं प्रचण्डं कश्यपात्मजम् ।
श्वेत पद्माधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥२॥

लोहितं रथमारूढं सर्वलोकपितामहम् ।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥३॥

त्रैगुण्यश्च महाशूरं ब्रह्माविष्णु महेश्वरम् ।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥४॥

बृह्मितं तेजःपुञ्जञ्च वायुराकाशमेव च ।
प्रभुत्वं सर्वलोकानां तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥५॥

बन्धूकपुष्पसङ्काशं हारकुण्डलभूषितम् ।
एकचक्रधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥६॥

तं सूर्यं लोककर्तारं महा तेजः प्रदीपनम् ।
महापाप हरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥७॥

तं सूर्यं जगतां नाथं ज्ञानप्रकाशमोक्षदम् ।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥८॥

सूर्याष्टकं पठेन्नित्यं ग्रहपीडा प्रणाशनम् ।
अपुत्रो लभते पुत्रं दारिद्रो धनवान् भवेत् ॥९॥

Monday, November 24, 2014

सोलह सिद्धिया:-

सोलह सिद्धिया:-

1. वाक् सिद्धि :

जो भी वचन बोले जाए वे व्यवहार में पूर्ण हो, वह वचन कभी व्यर्थ न. जाये, प्रत्येक शब्द का महत्वपूर्ण अर्थ हो, वाक् सिद्धि युक्त व्यक्ति में श्राप अरु वरदान देने की क्षमता होती हैं!

2. दिव्य दृष्टि:

दिव्यदृष्टि का तात्पर्य हैं कि जिस व्यक्ति के सम्बन्ध में भी चिन्तन किया जाये, उसका भूत, भविष्य और वर्तमान एकदम सामने आ जाये, आगे क्या कार्य करना हैं, कौन सी घटनाएं घटित होने वाली हैं, इसका ज्ञान होने पर व्यक्ति दिव्यदृष्टियुक्त महापुरुष बन जाता हैं!

3. प्रज्ञा सिद्धि :

प्रज्ञा का तात्पर्य यह हें की मेधा अर्थात स्मरणशक्ति, बुद्धि, ज्ञान इत्यादि! ज्ञान के सम्बंधित सारे विषयों को जो अपनी बुद्धि में समेट लेता हें वह प्रज्ञावान कहलाता हें! जीवन के प्रत्येक क्षेत्र से सम्बंधित ज्ञान के साथ-साथ भीतर एक चेतनापुंज जाग्रत रहता हें!

4. दूरश्रवण :

इसका तात्पर्य यह हैं की भूतकाल में घटित कोई भी घटना, वार्तालाप को पुनः सुनने की क्षमता!

5. जलगमन :

यह सिद्धि निश्चय ही महत्वपूर्ण हैं, इस सिद्धि को प्राप्त योगी जल, नदी, समुद्र पर इस तरह विचरण करता हैं मानों धरती पर गमन कर रहा हो!

6. वायुगमन :

इसका तात्पर्य हैं अपने शरीर को सूक्ष्मरूप में परिवर्तित कर एक लोक से दूसरे लोक में गमन कर सकता हैं, एक स्थान से दूसरे स्थान पर सहज तत्काल जा सकता हैं!

7. अदृश्यकरण :

अपने स्थूलशरीर को सूक्ष्मरूप में परिवर्तित कर अपने आप को अदृश्य कर देना! जिससे स्वयं की इच्छा बिना दूसरा उसे देख ही नहीं पाता हैं!

8. विषोका :

इसका तात्पर्य हैं कि अनेक रूपों में अपने आपको परिवर्तित कर लेना! एक स्थान पर अलग रूप हैं, दूसरे स्थान पर अलग रूप हैं!

9. देवक्रियानुदर्शन :

इस क्रिया का पूर्ण ज्ञान होने पर विभिन्न देवताओं का साहचर्य प्राप्त कर सकता हैं! उन्हें पूर्ण रूप से अनुकूल बनाकर उचित सहयोग लिया जा सकता हैं!

10. कायाकल्प :

कायाकल्प का तात्पर्य हैं शरीर परिवर्तन! समय के प्रभाव से देह जर्जर हो जाती हैं, लेकिन कायाकल्प कला से युक्त व्यक्ति सदैव तोग्मुक्त और यौवनवान ही बना रहता हैं!

11. सम्मोहन :

सम्मोहन का तात्पर्य हैं कि सभी को अपने अनुकूल बनाने की क्रिया! इस कला को पूर्ण व्यक्ति मनुष्य तो क्या, पशु-पक्षी, प्रकृति को भी अपने अनुकूल बना लेता हैं!

12. गुरुत्व :

गुरुत्व का तात्पर्य हैं गरिमावान! जिस व्यक्ति में गरिमा होती हैं, ज्ञान का भंडार होता हैं, और देने की क्षमता होती हैं, उसे गुरु कहा जाता हैं! और भगवन कृष्ण को तो जगद्गुरु कहा गया हैं!

13. पूर्ण पुरुषत्व :

इसका तात्पर्य हैं अद्वितीय पराक्रम और निडर, एवं बलवान होना! श्रीकृष्ण में यह गुण बाल्यकाल से ही विद्यमान था! जिस के कारन से उन्होंने ब्रजभूमि में राक्षसों का संहार किया! तदनंतर कंस का संहार करते हुए पुरे जीवन शत्रुओं का संहार कर आर्यभूमि में पुनः धर्म की स्थापना की!

14. सर्वगुण संपन्न :

जितने भी संसार में उदात्त गुण होते हैं, सभी कुछ उस व्यक्ति में समाहित होते हैं, जैसे – दया, दृढ़ता, प्रखरता, ओज, बल, तेजस्विता, इत्यादि! इन्हीं गुणों के कारण वह सारे विश्व में श्रेष्ठतम व अद्वितीय मन जाता हैं, और इसी प्रकार यह विशिष्ट कार्य करके संसार में लोकहित एवं जनकल्याण करता हैं!

15. इच्छा मृत्यु :

इन कलाओं से पूर्ण व्यक्ति कालजयी होता हैं, काल का उस पर किसी प्रकार का कोई बंधन नहीं रहता, वह जब चाहे अपने शरीर का त्याग कर नया शरीर धारण कर सकता हैं!

16. अनुर्मि :

अनुर्मि का अर्थ हैं-जिस पर भूख-प्यास, सर्दी-गर्मी और भावना-दुर्भावनाका कोई प्रभाव न हो!

Tuesday, November 18, 2014

!माता के 52 शक्ति पीठ!!

!!माता के 52 शक्ति पीठ!!

देवी भागवत पुराण में 108, कालिकापुराण में छब्बीस,
शिवचरित्र में इक्यावन, दुर्गा शप्तसती और तंत्रचूड़ामणि में
शक्ति पीठों की संख्या 52 बताई गई है।

साधारत: 51 शक्ति पीठ माने जाते हैं। तंत्रचूड़ामणि में लगभग 52
शक्ति पीठों के बारे में बताया गया है। प्रस्तुत है

तंत्रचूड़ामणि की तालिका।

1.हिंगलाज
हिंगुला या हिंगलाज शक्तिपीठ जो कराची से 125
किमी उत्तर पूर्व में स्थित है, जहाँ माता का ब्रह्मरंध (सिर)
गिरा था। इसकी शक्ति- कोटरी (भैरवी-
कोट्टवीशा) है और भैरव को भीमलोचन कहते हैं।

2.शर्कररे (करवीर)
पाकिस्तान में कराची के सुक्कर स्टेशन के निकट स्थित है शर्कररे
शक्तिपीठ, जहाँ माता की आँख
गिरी थी। इसकी शक्ति-
महिषासुरमर्दिनी और भैरव को क्रोधिश कहते हैं।

3.सुगंधा- सुनंदा
बांग्लादेश के शिकारपुर में बरिसल से 20 किमी दूर सोंध
नदी के किनारे स्थित है माँ सुगंध,
जहाँ माता की नासिका गिरी थी।
इसकी शक्ति है सुनंदा और भैरव को त्र्यंबक कहते हैं।

4.कश्मीर- महामाया
भारत के कश्मीर में पहलगाँव के निकट माता का कंठ गिरा था।
इसकी शक्ति है महामाया और भैरव को त्रिसंध्येश्वर कहते हैं।

5.ज्वालामुखी- सिद्धिदा (अंबिका)
भारत के हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में माता की जीभ
गिरी थी, उसे ज्वालाजी स्थान कहते
हैं। इसकी शक्ति है सिद्धिदा (अंबिका) और भैरव को उन्मत्त कहते हैं।

6.जालंधर- त्रिपुरमालिनी
पंजाब के जालंधर में छावनी स्टेशन के निकट
देवी तलाब जहाँ माता का बायाँ वक्ष (स्तन) गिरा था।
इसकी शक्ति है त्रिपुरमालिनी और भैरव को भीषण कहते हैं।

7.वैद्यनाथ- जयदुर्गा
झारखंड के देवघर में स्थित वैद्यनाथधाम जहाँ माता का हृदय गिरा था। इसकी शक्ति है जय दुर्गा और भैरव को वैद्यनाथ कहते हैं।

8.नेपाल- महामाया
नेपाल में पशुपतिनाथ मंदिर के निकट स्थित है गुजरेश्वरी मंदिर
जहाँ माता के दोनों घुटने (जानु) गिरे थे। इसकी शक्ति है
महशिरा (महामाया) और भैरव को कपाली कहते हैं।

9.मानस- दाक्षायणी
तिब्बत स्थित कैलाश मानसरोवर के मानसा के निकट एक पाषाण शिला पर
माता का दायाँ हाथ गिरा था। इसकी शक्ति है
दाक्षायनी और भैरव अमर हैं।

10.विरजा- विरजाक्षेत्र
भारतीय प्रदेश उड़ीसा के विराज में उत्कल स्थित
जगह पर माता की नाभि गिरी थी।
इसकी शक्ति है विमला और भैरव को जगन्नाथ कहते हैं।

11.गंडकी- गंडकी
नेपाल में गंडकी नदी के तट पर पोखरा नामक स्थान
पर स्थित मुक्तिनाथ मंदिर, जहाँ माता का मस्तक या गंडस्थल अर्थात
कनपटी गिरी थी।
इसकी शक्ति है गण्डकी चण्डी और
भैरव चक्रपाणि हैं।

12.बहुला- बहुला (चंडिका)
भारतीय प्रदेश पश्चिम बंगाल से वर्धमान जिला से 8
किमी दूर कटुआ केतुग्राम के निकट अजेय नदी तट
पर स्थित बाहुल स्थान पर माता का बायाँ हाथ गिरा था।
इसकी शक्ति है देवी बाहुला और भैरव को भीरुक कहते हैं।

13.उज्जयिनी- मांगल्य चंडिका
भारतीय प्रदेश पश्चिम बंगाल में वर्धमान जिले से 16
किमी गुस्कुर स्टेशन से उज्जयिनी नामक स्थान पर
माता की दायीं कलाई
गिरी थी। इसकी शक्ति है मंगल
चंद्रिका और भैरव को कपिलांबर कहते हैं।

14.त्रिपुरा- त्रिपुर सुंदरी
भारतीय राज्य त्रिपुरा के उदरपुर के निकट राधाकिशोरपुर गाँव के
माताबाढ़ी पर्वत शिखर पर माता का दायाँ पैर गिरा था।
इसकी शक्ति है त्रिपुर सुंदरी और भैरव को त्रिपुरेश कहते हैं।

15.चट्टल - भवानी
बांग्लादेश में चिट्टागौंग (चटगाँव) जिला के सीताकुंड स्टेशन के निकट चंद्रनाथ पर्वत शिखर पर छत्राल (चट्टल या चहल) में
माता की दायीं भुजा गिरी थी।
इसकी शक्ति भवानी है और भैरव को चंद्रशेखर कहते हैं।

16.त्रिस्रोता- भ्रामरी
भारतीय राज्य पश्चिम बंगाल के जलपाइगुड़ी के बोडा मंडल के सालबाढ़ी ग्राम स्थित त्रिस्रोत स्थान पर माता का बायाँ पैर गिरा था। इसकी शक्ति है
भ्रामरी और भैरव को अंबर और भैरवेश्वर कहते हैं।

17.कामगिरि- कामाख्या
भारतीय राज्य असम के गुवाहाटी जिले के कामगिरि क्षेत्र में स्थित नीलांचल पर्वत के कामाख्या स्थान पर माता का योनि भाग गिरा था। इसकी शक्ति है कामाख्या और भैरव
को उमानंद कहते हैं।

18.प्रयाग- ललिता
भारतीय राज्य उत्तरप्रदेश के इलाहबाद शहर (प्रयाग) के संगम
तट पर माता की हाथ
की अँगुली गिरी थी।
इसकी शक्ति है ललिता और भैरव को भव कहते हैं।

19.जयंती- जयंती
बांग्लादेश के सिल्हैट जिले के जयंतीया परगना के भोरभोग गाँव कालाजोर
के खासी पर्वत पर जयंती मंदिर
जहाँ माता की बायीं जंघा गिरी थी।
इसकी शक्ति है जयंती और भैरव
को क्रमदीश्वर कहते हैं।

20.युगाद्या- भूतधात्री
पश्चिम बंगाल के वर्धमान जिले के खीरग्राम स्थित
जुगाड्या (युगाद्या) स्थान पर माता के दाएँ पैर का अँगूठा गिरा था। इसकी शक्ति है भूतधात्री और भैरव को क्षीर खंडक कहते हैं।
21.कालीपीठ- कालिका
कोलकाता के कालीघाट में माता के बाएँ पैर का अँगूठा गिरा था।
इसकी शक्ति है कालिका और भैरव को नकुशील कहते हैं।

22.किरीट- विमला (भुवनेशी)
पश्चिम बंगाल के मुर्शीदाबाद जिला के लालबाग कोर्ट रोड स्टेशन के
किरीटकोण ग्राम के पास माता का मुकुट गिरा था।
इसकी शक्ति है विमला और भैरव को संवर्त्त कहते हैं।

23.वाराणसी- विशालाक्षी
उत्तरप्रदेश के काशी में मणिकर्णिक घाट पर माता के कान के
मणिजड़ीत कुंडल गिरे थे। इसकी शक्ति है विशालाक्षी मणिकर्णी और भैरव को काल भैरव कहते हैं।

24.कन्याश्रम- सर्वाणी
कन्याश्रम में माता का पृष्ठ भाग गिरा था। इसकी शक्ति है
सर्वाणी और भैरव को निमिष कहते हैं।

25.कुरुक्षेत्र- सावित्री
हरियाणा के कुरुक्षेत्र में माता की एड़ी (गुल्फ)
गिरी थी। इसकी शक्ति है
सावित्री और भैरव है स्थाणु

26.मणिदेविक- गायत्री
अजमेर के निकट पुष्कर के मणिबन्ध स्थान के गायत्री पर्वत पर दो मणिबंध गिरे थे। इसकी शक्ति है गायत्री और
भैरव को सर्वानंद कहते हैं।

27.श्रीशैल- महालक्ष्मी
बांग्लादेश के सिल्हैट जिले के उत्तर-पूर्व में जैनपुर गाँव के पास शैल नामक स्थान
पर माता का गला (ग्रीवा) गिरा था। इसकी शक्ति है
महालक्ष्मी और भैरव को शम्बरानंद कहते हैं।

28.कांची- देवगर्भा
पश्चिम बंगाल के बीरभुम जिला के बोलारपुर स्टेशन के उत्तर पूर्व
स्थित कोपई नदी तट पर कांची नामक स्थान पर
माता की अस्थि गिरी थी।
इसकी शक्ति है देवगर्भा और भैरव को रुरु कहते हैं।

29.कालमाधव- देवी काली
मध्यप्रदेश के अमरकंटक के कालमाधव स्थित शोन नदी तट के
पास माता का बायाँ नितंब गिरा था जहाँ एक गुफा है। इसकी शक्ति है काली और भैरव को असितांग कहते हैं।

30.शोणदेश- नर्मदा (शोणाक्षी)
मध्यप्रदेश के अमरकंटक स्थित नर्मदा के उद्गम पर शोणदेश स्थान पर माता का दायाँ नितंब गिरा था। इसकी शक्ति है नर्मदा और भैरव को भद्रसेन कहते हैं।

31.रामगिरि- शिवानी
उत्तरप्रदेश के झाँसी-मणिकपुर रेलवे स्टेशन चित्रकूट के पास
रामगिरि स्थान पर माता का दायाँ वक्ष गिरा था। इसकी शक्ति है
शिवानी और भैरव को चंड कहते हैं।

32.वृंदावन- उमा
उत्तरप्रदेश के मथुरा के निकट वृंदावन के भूतेश्वर स्थान पर माता के गुच्छ औ चूड़ामणि गिरे थे। इसकी शक्ति है उमा और भैरव को भूतेश कहते हैं।

33.शुचि- नारायणी
तमिलनाडु के कन्याकुमारी-तिरुवनंतपुरम मार्ग पर
शुचितीर्थम शिव मंदिर है, जहाँ पर
माता की ऊपरी दंत (ऊर्ध्वदंत) गिरे थे। इसकी शक्ति है नारायणी और भैरव को संहार कहते हैं।

34.पंचसागर- वाराही
पंचसागर (अज्ञात स्थान) में माता की निचले दंत (अधोदंत) गिरे थे।
इसकी शक्ति है वराही और भैरव को महारुद्र कहते हैं।

35.करतोयातट- अपर्णा
बांग्लादेश के शेरपुर बागुरा स्टेशन से 28 किमी दूर
भवानीपुर गाँव के पार करतोया तट स्थान पर
माता की पायल (तल्प) गिरी थी।
इसकी शक्ति है अर्पण और भैरव को वामन कहते हैं।

36.श्रीपर्वत- श्रीसुंदरी
कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र के पर्वत पर माता के दाएँ पैर
की पायल गिरी थी।
दूसरी मान्यता अनुसार आंध्रप्रदेश के कुर्नूल जिले के
श्रीशैलम स्थान पर दक्षिण गुल्फ अर्थात दाएँ पैर
की एड़ी गिरी थी।
इसकी शक्ति है श्रीसुंदरी और भैरव
को सुंदरानंद कहते हैं।

37.विभाष- कपालिनी
पश्चिम बंगाल के जिला पूर्वी मेदिनीपुर के पास तामलुक
स्थित विभाष स्थान पर
माता की बायीं एड़ी गिरी थी।
इसकी शक्ति है कपालिनी (भीमरूप)
और भैरव को शर्वानंद कहते हैं।

38.प्रभास- चंद्रभागा
गुजरात के गीर-सोमनाथ जिले में स्थित सोमनाथ मंदिर के निकट वेरावल स्टेशन से 4 किमी प्रभास क्षेत्र में माता का उदर गिरा था।
इसकी शक्ति है चंद्रभागा और भैरव को वक्रतुंड कहते हैं।

39.भैरवपर्वत- अवंती
मध्यप्रदेश के उज्जैन नगर में शिप्रा नदी के तट के पास भैरव
पर्वत पर माता के ओष्ठ गिरे थे। इसकी शक्ति है अवंति और
भैरव को लम्बकर्ण कहते हैं।

40.जनस्थान- भ्रामरी
महाराष्ट्र के नासिक नगर स्थित
गोदावरी नदी घाटी स्थित जनस्थान पर
माता की ठोड़ी गिरी थी।
इसकी शक्ति है भ्रामरी और भैरव है विकृताक्ष।

41.सर्वशैल स्थान
आंध्रप्रदेश के राजामुंद्री क्षेत्र स्थित
गोदावरी नदी के तट पर कोटिलिंगेश्वर मंदिर के पास
सर्वशैल स्थान पर माता के वाम गंड (गाल) गिरे थे। इसकी शक्ति है
राकिनी और भैरव को वत्सनाभम कहते हैं

42.गोदावरीतीर :
यहाँ माता के दक्षिण गंड गिरे थे। इसकी शक्ति है विश्वेश्वरी और भैरव को दंडपाणि कहते हैं।

43.रत्नावली- कुमारी
बंगाल के हुगली जिले के खानाकुल-कृष्णानगर मार्ग पर
रत्नावली स्थित रत्नाकर नदी के तट पर माता का दायाँ स्कंध गिरा था। इसकी शक्ति है कुमारी और भैरव को शिव कहते हैं।

44.मिथिला- उमा (महादेवी)
भारत-नेपाल सीमा पर जनकपुर रेलवे स्टेशन के निकट मिथिला में
माता का बायाँ स्कंध गिरा था। इसकी शक्ति है उमा और भैरव
को महोदर कहते हैं।

45.नलहाटी- कालिका तारापीठ
पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले के नलहाटि स्टेशन के निकट
नलहाटी में माता के पैर
की हड्डी गिरी थी।
इसकी शक्ति है कालिका देवी और भैरव को योगेश कहते हैं।

46.कर्णाट- जयदुर्गा
कर्नाट (अज्ञात स्थान) में माता के दोनों कान गिरे थे। इसकी शक्ति है जयदुर्गा और भैरव को अभिरु कहते हैं।

47.वक्रेश्वर- महिषमर्दिनी
पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले के दुबराजपुर स्टेशन से सात
किमी दूर वक्रेश्वर में पापहर नदी के तट पर
माता का भ्रूमध्य (मन:) गिरा था। इसकी शक्ति है महिषमर्दिनी और भैरव को वक्रनाथ कहते हैं।

48.यशोर- यशोरेश्वरी
बांग्लादेश के खुलना जिला के ईश्वरीपुर के यशोर स्थान पर माता के हाथ और पैर गिरे (पाणिपद्म) थे। इसकी शक्ति है
यशोरेश्वरी और भैरव को चण्ड कहते हैं।

49.अट्टाहास- फुल्लरा
पश्चिम बंगला के लाभपुर स्टेशन से दो किमी दूर अट्टहास स्थान पर माता के ओष्ठ गिरे थे। इसकी शक्ति है फुल्लरा और भैरव
को विश्वेश कहते हैं।

50.नंदीपूर- नंदिनी
पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले के सैंथिया रेलवे स्टेशन
नंदीपुर स्थित चारदीवारी में बरगद के वृक्ष के समीप माता का गले का हार गिरा था।
इसकी शक्ति है नंदिनी और भैरव को नंदिकेश्वर कहते हैं।

51.लंका- इंद्राक्षी
श्रीलंका में

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Saturday, November 15, 2014

ज्योतिषशास्त्रका महात्म्य

छन्दः पादौ तु वेदस्य हस्तौ कल्पोथ पठ्यते । 
ज्योतिषामयनं   चक्षुर्निरुक्तं     श्रोत्रमुच्यते  ॥ 
शिक्षा घ्राणं तु वेदस्य मुखं व्याकरणं स्मॄतम् । 
तस्मात् साङ्गमधीत्यैव ब्रह्मलोके महीयते ॥ 
वेदरूपी पुरुषके छन्दशास्त्र पैर है, दोनों हाथ कल्प है,ज्योतिषशास्त्र नेत्र है, शिक्षाको वेदकी नासिका तथा मुखको व्याकरण कहा गया है, अतः वेदांगोके ज्ञानके साथ ही वेदका अध्ययन करनेवाला ब्रह्मलोकमें प्रतिष्ठा प्राप्त करता है । (पाणिनीय शिक्षा ४१ - ४२ )   

Sunday, November 9, 2014

रेवा गीत

रेवा गीत 
गायति रेवा रव मधुरम् ( २ )
हर हर ॐ ॐ  हर हर ॐ ॐ हर हर ॐ ॐ हर हर ॐ !
सायं प्रातः प्रातः सायं हर हर ॐ ॐ सततमिति ॥ गायति ॥ 
मेकलजाता मनसि विभाता, रौति कलं किमपीह चिरम् । 
त्वमहमहं त्वं  त्वमहमहं त्वं त्वमहमहं त्वं त्वमहमिति ॥ गायति  ॥ 
तडिदुज्जवलजलमुखतः स्तौति,  नीरंगं नानारंगम्  । 
ब्रह्माहं त्वं ब्रह्मैवेदं जलशीकरवदभिन्नमिति  ॥ गायति ॥     

Sunday, October 26, 2014

संस्कृत सुभाषितानि


विवेक: सह संपत्या
विनयो विद्यया सह।
प्रभुत्वं प्रश्रयोपेतं चिन्हमेतन्महात्मनाम्॥
अर्थात :-
संपत्ति के साथ विवेक, विद्या के साथ विनय और शक्ति के साथ दूसरों की सुरक्षा, ये महापुरुषों के लक्षण हैं॥

Friday, October 24, 2014

नाद

"नाद"
(व्यक्ति में हीर है हीै, लेकिन उसको तरासने वाला कोई सद्गुरु मिल जाए।) तो वह हीरा बन जाता है।
       {हीरा-dimond}
किसी खदान के भीतर अत्यंत गहराई में पड़े हुए हीरे को अपने आप को क्या और कैसा मानना चाहिये ?

क्या वह हीरा यह माने कि वह हीरा बनने की पात्रता रखता है ?

क्या हीरे को अपने ऊपर पड़ी हुई पहाड़ सरीखी बुराई रुपी मिटटी-पत्थरों को अपनी अशुद्धि मान कर अपने आप को बीज रूप मानना चाहिये ?

फिर उसे हटाने में अपना समय खर्च करना चाहिये ? 

जब पहाड़ सरीखी बुराई रुपी मिटटी-पत्थर नष्ट हो जाएँ, तभी उसे अपने को बीज से पेड़ रुपी शुद्ध परमात्मा मानना चाहिये ?

या फिर उस हीरे को यह मानना चाहिए कि वह आज और अभी और हमेशा से हीरा ही है । उसके हीरक-द्रव्य में किसी भी तरह की अशुद्धि का प्रवेश न पहले था, न अभी है और न ही आगे कभी भी होगा ।

हे पुण्यवंत, वह हीरा आप ही हो । आपके आत्मा में किसी भी तरह की अशुद्धि का प्रवेश न पहले था, न अभी है और न ही आगे कभी भी होगा । इस बात को स्वीकार करते ही आपका मुक्ति-पथ की ओर गमन शुरू हो जाएगा।।
  *एक शेर अर्ज करता हूँ।
जहर भी उसका और नूर भी उसका।
फिर न देखे तो कुसूर किसका?*
          *श्रीव्रजेशभाई*
            "कृतार्थोहं"

Thursday, October 23, 2014

रूपचतुर्दशी

"नाद"
(मेरे मित्रों को रूपचतुर्दशी की मङलकामना) अपने रूप से प्रभु स्वरूप की प्राप्ति)
**आज का दिन नरक चतुर्दशी के रूप में भी मनाया जाता है।*** कथाओं के अनुसार आज ही के दिन भगवान कष्ण ने नरकासुर नाम के दैत्य का संहार किया था। आज के दिन मृत्यु के देवता यमराज के लिए दीप दान भी किया जाता है।
नरक चतुर्दशी की कथा: पुराने समय की बात है रन्तिदेवी नाम के राजा हुए थे। रन्तिदेवी अपने पूर्व जन्म में काफी धार्मिक व दानी थे, इस जन्म में भी दान पुण्य में ही समय बिताया था। कोई पाप किया याद न था, लेकिन जब अंतिम समय आया तो यमदूत लेने आए। राजा ने यमदूतों से पूछा कि मैंने तो काफी दान पुण्य किया है कोई पाप नहीं किया फिर यमदूत क्यों आए हैं। मतलब मैं नरक में जांऊगा।
राजा रन्तिदेवी ने यमदूतों से एक वर्ष की आयु की माँग की। यमदूतों ने राजा की प्रार्थना स्वीकार कर ली और बताया कि एक बार तुम्हारे द्वार से एक ब्राह्मण भूखा वापस लौट गया था इस कारण नरक भोगना पडेग़ा।
राजा ने ऋषि मुनियों से जाकर अपनी व्यथा बताई। ऋषियों ने कहा कि राजन् तुम कार्तिक मास की कष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करो और इस ब्राह्मणों को भोजन कराओ और अपना अपराध सबके सामने स्वीकार कर क्षमा याचना करो। ऐसा करने से तुम पाप से मुक्त हो जाओगे।
राजा ने ब्राह्मणों के कहे अनुसार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को व्रत रखा व सब पापों से मुक्त हो विष्णु लोक चला गया।
रूप चतुर्दशी: आज का दिन रूप चतुर्दशी के रूप में भी मनाया जाता है। कहते हैं कि आज के भगवान कृष्ण की पूजा करने से सुन्दरता मिलती है।
कथा: पुराने जमाने की बात है हिरण्यगर्भ नाम के स्थान पर एक योगीराज रहते थे। उन्होंने भगवान की घोर आराधना शुरू की। समाधि लगाए कुछ दिन ही बीते थे कि उनके शरीर में कीडे पड़ गए और पूरे शरीर में जुएं हो गर्इं। योगीराज को काफी दुख हुआ।
नारद मुनि उस समय वहाँ से निकले और योगीराज के दुख का कारण पूछा। योगीराज ने अपना दुख बताया तो नारद बोले कि हे योगीराज आपने देह आचार का पालन नहीं किया इसलिए आपकी ये दशा हुई है। अब आप कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को व्रत रख भगवान का स्मरण करे व पूजा करे तो आपकी देह पहले जैसी हो जाएगी व आप रूप सौन्दर्य को प्राप्त करगे।
योगीराज ने नारद मुनि के कहे अनुसार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को व्रत किया और भगवान कृष्ण की पूजा आराधना की और रूप सौन्दर्य को प्राप्त किया।
छोटी दीपावली या कानी दीपावली
आज का दिन छोटी दीपावली का कानी दीपावली के तौर पर भी जाना जाता है। आज के दिन स्नान आदि से शुध्द हो कर एक थाली में एक चौमुखी दीपक और सोलह छोटे दीपक लेकर तेल बाती डालकर जलाना चाहिए। फिर रोली, धूप, अबीर, गुलाल, गुड़, फूल आदि से पूजा करें व पूजन करें। यह पूजन स्त्रियों को घर के पुरुषों के बाद करना चाहिए। पूजा के बाद चौमुखी दीपक को घर के मुख्य द्वार पर रख दें और बाकी दीपक घर के अलग अलग स्थानों पर रख दें। माँ लक्ष्मी की पूजा भी आज की जाती है।
            *श्रीव्रजेशभाई*
              *कृतार्थोहं*