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Friday, June 8, 2018

,विचार

*बहुत मुश्किल काम है सभी रिश्तों को खुश रखना..!!*

*चिराग जलाते ही..* *अंधेरे रूठ जाते हैं..!!*

Tuesday, May 1, 2018

सुभाषितानि

श्लोक संग्रह: (सुभाषितानि)

1- धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः ।
    तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मानो धर्मो हतो वधीत्  ।।

2- जातेSपि भरते देशे, यो न जानाति संस्कृतम्  ।
    धर्मञ्च संस्कृतिञ्चैव, स न जानाति भारतम्  ।।

3- अनित्यानि शरीराणि विभवो नैव शाश्वतः ।
    नित्यं सन्निहितः मृत्यु: कर्तव्यं धर्म संग्रहः ।।

4- विकृतिं नैव गच्छन्ति संगदोषेण साधवः  ।
    आवेष्टितं महासर्पैश्चंदनं न विषायते  ।।

5- धृतिः क्षमा दमोSस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः ।
    धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्  ।।

6- हयग्रीव हयग्रीव हयग्रीवेति यो वदेत्  ।
    तस्य निस्सरते वाणी जन्हुकन्या प्रवाहवत् ।।

7- रक्तः श्वेतो हरितः पाटलश्च पाण्डुश्चित्रः श्यामलाभः                       पिशङ्गः ।
  पिताभः स्यात्कुर्बरो बभ्रुकश्च कृष्णश्चेति द्वादशर्क्षाणि  मेषात्  ।।

8- सत्यं माता पिता ज्ञानं धर्मो भ्राता दया सखा ।
    शांतिः पत्नी क्षमा पुत्रः षडेते मम बान्धवाः  ।।

9- आर्ता देवान् नमस्यन्ति, तपः कुर्वन्ति रोगिणः ।
    निर्धनाः दानमिच्छन्ति, वृद्धा नारी पतिव्रता  ।।

10- अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतंकर्म शुभाशुभम्  ।
       नाभुक्तेक्षीयते कर्म जन्मकोटि शतैरपि  ।।

11- ना गुणी गुणीनां वेत्ति गुणी गुणीषू मत्सरी ।
      गुणी च गुणरागी विरलः सरलो जनः  ।।

12- यथा चित्तं तथा वाचः यथा वाचस्तथा क्रिया: ।
      चित्ते वाचि क्रियायान्च साधुनामेकरूपता  ।।

13- ज्ञानं विना मुक्तिपदं लभ्यते गुरुभक्तितः  ।
       गुरोः समानतो नान्यत् साधनं गुरुमार्गिणाम्  ।।

14- प्रारभ्यते न खलु विघ्न भयेन नीचै:
                       आरभ्यविघ्नविहिताः विरमन्ति मध्या: ।
      विघ्नै पुनः पुनरपि प्रतिहन्यमानाः
                       प्रारभ्य चोत्तमजनाः न परित्यजन्ति ।।

15- सुलभाः पुरुषा: राजन्  सततं प्रियवादिनः ।
      अप्रियस्य च सत्यस्य वक्ता श्रोता च दुर्लभः ।।

16- जलबिंदुनिपातेन क्रमशः पूर्यते घटः ।
       स हेतुः सर्वविद्यानां धर्मस्य च धनस्य च ।।

17- अपूज्या यत्र पूज्यन्ते पूज्यपूजाव्यतिक्रमः ।
       त्रीणि तत्र प्रजायन्ते दुर्भिक्षं मरणं भयम्  ।।

18- निन्दक नियरे राखिये आँगन कुटी छवाय ।
       बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय ।।

19- न स्वप्नेन जयेन्निद्रां न कामेन स्त्रियं जयेत् ।
       नेन्धनेन जयेद्वन्हिं न पानेन सुरां जयेत्  ।।

20- त्यजन्ति मित्राणि धनैर्विहीनं
                              पुत्राश्च  दाराश्च  सज्जनाश्च  ।
       तमर्थवन्तं  पुनराश्रयन्ति
                             अर्थो हि लोके मनुषस्य बन्धु: ।।

21- अभिमानो धनंयेषां चिरजीवन्ति ते जनाः ।
       अभिमानविहीनानां किं धनेन किमायुषा ।।

22- चन्दनं शीतलं लोके चंदनादपि चंद्रमाः ।
      चंद्रचंदनयोर्मध्ये  शीतला  साधुसंगतः ।।

23- वृथा वृष्टि: समुद्रेषु , वृथा तृप्तेषु भोजनम् ।
       वृथा दानं धनाढ्येषु ,वृथा दीपो दिवाSपि च ।।

24- क्रोधो वैवस्वतो राजा तृष्णा वैतरणी नदी ।
       विद्या कामदुघा धेनुः सन्तोषो नन्दनं वनम् ।।

25- एक एव हि भूतात्मा भूते भूते व्यवस्थितः ।
       एकधा बहुधा चैव दृश्यते जलचन्द्रवत्  ।।

26- अति तृष्णा न कर्तव्या तृष्णां नैव परित्यजेत् ।
       शनैः शनैश्च भोक्तव्यं स्वयं वित्तमुपार्जितम् ।।

27. श्रुतिस्मृति ममैवाज्ञे यस्ते उल्लंघ्य वर्तते ।
       आज्ञोच्छेदी मम द्रोही मद्भक्तोSपि न विद्यते ।।

28- एकादश्यां विशेषेण कर्तव्यं कार्यमद्वयम् ।
       रात्रौ जागरणं कार्यं दिवा हरिकीर्तनम् ।।

29- सर्पदुर्जनयोर्मध्ये वरं सर्पो न दुर्जनः ।
       सर्पो दशति कालेन दुर्जनस्तु पदे पदे ।।

30- आदानस्य प्रदानस्य कर्तव्यस्य च कर्मणः ।
       क्षिप्रं अक्रियमाणस्य कालः पिबति तद्रसम् ।।

31- सुशीलो मातृ पुण्येन पितृ पुण्येन चातुरः ।
      औदार्यं वंश पुण्येन आत्म पुण्येन भाग्यवान् ।।

32- बुद्धिः प्रभावः तेजश्च सत्वमुत्थानमेव च ।
       व्यवसायश्च यस्यास्ति तस्य वृत्तिभयं कुतः ।।

33- सर्वं परवशं दुःखं सर्वं आत्मवशं सुखम् ।
       एतद्विद्यात् समासेन लक्षणं सुखदुःखयोः ।।

34- कृत्वा विहारं वहिरेव नित्यं
                        सम्पूर्ण वर्षं बत तेन नीतम् ।
      नोद्घाटितं पुस्तकमेक पृष्ठं
                        स किं लिखेदुत्तरपुस्तिकायाम् ।।

35- आयुर्कर्मञ्च वित्तं च विद्या निधन मेव च ।
       पंचैतानि सृज्यन्ते गर्भस्तस्यैव देहिनाम् ।।

36- अहिल्या कुन्ती तारा द्रौपदी मन्दोदरी तथा ।
       पञ्चकन्या स्मरेन्नित्यं सर्वपाप क्षयं भवेत् ।।

37- अत्र सर्वासु विद्यासु कारणं गुरुरीतितः ।
       यथाशिवस्तथैवायं पूजनीयं प्रयत्नतः ।।

39- अग्रतश्चतुरो वेदान्पृष्ठतस्सशरन्धनुः ।
       इदम्ब्राह्म मिदंङ्क्षात्रं शापादपि शरादपि ।।

40- गोभिर्विप्रैश्च वेदैश्च सतीभिः सत्यवादिभिः ।
      अलुब्धै र्दानशीलैश्च सप्तभि र्धार्यते मही  ।।

41- पुण्यस्य फलमिच्छन्ति पुण्यन्नेच्छन्ति मानवाः।
       न पापफल मिच्छन्ति पापं कुर्वन्ति यत्नतः  ।।

42- अष्टादश पुराणेषु व्यासस्य वचनद्वयम्  ।
       परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम् ।।

43- अयं निजःपरो वेति गणना लघुचेतसाम् ।
       उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्  ।।

44- भूतानां प्राणिनःश्रेष्ठः प्राणिनां बुद्धिजीविनः।
       बुद्धिमत्सु नरःश्रेष्ठः नरेषु ब्राह्मणःस्मृतः  ।।

45- असारे खलु संसारे सारमेतत् चतुष्टयम् ।
      काश्यांवासः सतांसंग गँगाम्भः शिव दर्शनम् ।।

46- धूम्रपानरते विप्रे दानं कुर्वन्ति ये नराः ।
       ते नरा नरकं यान्ति ब्राह्मणा ग्रामशूकराः ।।

47- न अन्नोदकसमं दानं न तिथिद्वादशीसमा ।
      न गायत्र्या: समो मन्त्रो न मातुः परदेवतम् ।।

48- न जले मार्जनं संध्या न मंत्रोच्चारणादिभिः ।
      सन्धियते परब्रह्म सा संध्या सद्भिरुच्यते ।।

49- अष्टवर्षा भवेद्गौरी नववर्षा तु रोहिणी ।
       दशवर्षा भवेत्कन्या तत ऊर्ध्वं रजस्वला ।।

50- माता चैव पिता तस्य ज्येष्ठो भ्राता तथैव च ।
      त्रयस्ते नरकं यान्ति दृष्ट्वा कन्यां रजस्वलाम् ।।

51- न स्नानमाचरेद् भुक्त्वा नातुरो न महानिशि ।
      न वासोभिः सहाजस्रं नाविज्ञाते जलाशये ।।

52- गुरुणां पुरतो राज्ञो न चासीत महासने ।
      प्रौढ़पादो न तद्वाक्यं हेतुभिर्विकृतिं नयेत् ।।

53- आयुरारोग्यमैश्वर्यं विद्यालाभः सुखञ्जयः।
      कीर्तिर्मनोरथश्चास्तु नूतनवर्षं शुभं तव ।।

54- शिष्याणां मोक्षदानाय लीलया देहधारिणे।
       सदेहेऽपि विदेहाय तस्मै श्रीगुरवे नमः।।

55- एकवर्णं यथा दुग्धं भिन्नवर्णासु धेनुषु ।
       तथैव धर्मवैचित्र्यं तत्त्वमेकं परं स्मॄतम् ॥

56- नात्युच्चशिखरो मेरुर्नातिनीचं रसातलम् ।
      व्यवसायद्वितीयानां नात्यपारो महोदधि:।।

57- सत्यं माता पिता ज्ञानं धर्मो भ्राता दया सखा।
      शान्ति: पत्नी क्षमा पुत्र: षडेते मम बान्धवा:॥

58- सम्पूर्णकुम्भो न करोति शब्दं ,
                            अर्धोघटो घोषमुपैति नूनम् ।
      विद्वान् कुलीनो न करोति गर्व ,
                            गुणैर्विहीना बहु जल्पयन्ति।।

59- प्रदोषे दीपकश्चंद्र: प्रभाते दीपको रवि:।
      त्रैलोक्ये दीपको धर्म: सुपुत्र: कुलदीपक:॥

60- न हि जन्मनि ज्येष्ठत्वं गुणैर्ज्येष्ठत्वमुच्यते।
      गुणाद् गुरूत्वमायाति दुग्धं दधि घृतं यथा||

61- जलबिन्दु निपातेन क्रमशः पूर्यते घटः ।
      स हेतुः सर्वविद्यानां धर्मस्य च धनस्य च ।।

62- विप्रो वृक्षस्तस्य मूलं च सन्ध्या
                          वेदाः शाखा धर्म कर्माणि पत्रम्।
      तस्मात् मूलं यत्नतो रक्षणीयम्
                         छिन्ने मुले नैव शाखा न पत्रम्।।

63- सर्वे सर्वं न जानाति सर्वज्ञों नास्ति कश्चन ।
       नैकत्र परिनिष्ठास्ति ज्ञानस्य पुरुषे क्वचित् ।।

64- जन्मना ब्राह्मणो ज्ञेयः संस्कारैर्द्विज उच्यते।
      विद्यया याति विप्रत्वं त्रिभिः श्रोत्रिय उच्यते॥
                          (अत्रिसंहिता, श्लोकः १४०)

65- स्नाने दाने जपे होमे संध्याया देवतार्चने ।
      शिखाग्रन्थिं विना कर्म नकुर्याद्वै कदाचन ।।

66- शौचेथ शयने संगे भोजने दन्त धावने ।
      शिखामुक्तिं सदा कुर्यादित्येतन्मनुरब्रवीत् ।।

67- प्रतार्नाभौ करं कृत्वा मध्यान्हे हृदि संस्थितम् ।
      सायं जपेच्च नासाग्रे ह्येष जप्यविधिः स्मृतः ।।

68- अल्पानामपि वस्तूनां संहति: कार्यसाधिका|
      तॄणैर्गुणत्वमापन्नैर् बध्यन्ते मत्तदन्तिन:||

छोटी-छोटी वस्तूएँ एकत्र करने से बडा काम भी हो सकता है| तिनके-तिनके घास को जोड़कर बनायी हुर्इ डोरी से मत्त-हाथी बाँधा जा सकता है|

69- अजरामरवत्प्राज्ञो विद्यामर्थं च चिन्तयेत्।
       गृहीत इव केशेषु मृत्युना धर्ममाचरेत्॥

70- गणेशं ताम्रपात्रेण स्वर्णपात्रेण जगदम्बिका ।
      शिवम् गवय श्रृंगेण विष्णुं शंखवादिना ।।

71- सत्येन शुध्यते वाणी मनो ज्ञानेन शुध्यति ।
      गुरुशुश्रूषया काया शुध्दिरेषा सनातनी ॥

72- घटं भित्त्वा पटं छित्त्वा कृत्त्वा रासभरोहणम् ।
      येन केन प्रकारेण प्रसिद्धः पुरुषो भवेत् ।।

73- नाभिषेको न संस्कारः सिंहस्य क्रियते मृगैः ।
      विक्रमार्जित राजस्य स्वयमेव मृगेन्द्रता ।।

74- अग्निहोत्रं गृहं क्षेत्रं मित्रं भार्यां सुतं शिशुम् |
       रिक्तपाणिर्न पश्येत् च राजानं देवतां गुरुम् ||

75- स जीवति गुणा यस्य धर्मो यस्य स जीवति।
      गुणधर्मविहीनो यो निष्फलं तस्य जीवितम्।।

76- अन्नदानं परं दानं विद्यादानमतः परम्।
      अन्नेन क्षणिका तृप्ति-र्यावज्जीवं च विद्यया।।
[: [li: रिक्तपाणिर्न पश्येत् राजानं देवतां गुरुम् |
दैवज्ञं भिषजं मित्रं फलेन फलमादिशेत् ||

राजा, देव, गुरु, ज्योतिषी, वैद्य आणि मित्र यांच्याकडे रिकाम्या हाताने जाऊ नये. काही वस्तू, फळ देऊन त्याचं फळ मिळवावे.
[i: कौर्मं संकोचमास्थाय प्रहारानपि मर्षयेत् |
प्राप्ते काले च मतिमानुत्तिष्ठेत् कृष्णसर्पवत् ||
🙏🙏🙏🙏🙏

Monday, April 30, 2018

सभी तूफान आपके जीवन को अस्त-व्यस्त करने नहीं आते।*

*कुछ आपका रास्ता साफ करने भी आते हैं*

Wednesday, April 25, 2018

સુંદર વિચાર


*ખુદ રામ હોવા છતા પણ જરુર પડે છે હનુમાનની*

*તો મિત્રો વિનાની જિંદગી ભાઈ આપણી’ય શું કામની*
*🙏🏻મહાદેવ શંભુ*🙏🏻

Tuesday, February 20, 2018

श्वेतार्क गणपति पूजन विधान

श्वेतार्क गणपति पूजन  विधान
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गणेश प्रतिमाओं का दर्शन विभिन्न मुद्राओं में होता है लेकिन प्रमुख तौर पर वाम एवं दक्षिण सूण्ड वाले गणेश से आमजन परिचित हैं। इनमें सात्विक और सामान्य उपासना की दृष्टि से वाम सूण्ड वाले गणेश और तामसिक एवं असाधारण साधनाओं के लिए दांयी सूण्ड वाले गणेश की पूजा का विधान रहा है।

तत्काल सिद्धि प्राप्ति के लिए श्वेतार्क गणपति की साधना भी लाभप्रद है। ऐसी मान्यता है कि रवि पुष्य नक्षत्रा में सफेद आक की जड़ से बनी गणेश प्रतिमा सद्य फलदायी है।

श्वेतार्क गणपति,,,शास्त्रों में श्वेतार्क के बारे में कहा गया है- "जहां कहीं भी यह पौधा अपने आप उग आता है, उसके आस-पास पुराना धन गड़ा होता है। जिस घर में श्वेतार्क की जड़ रहेगी, वहां से दरिद्रता स्वयं पलायन कर जाएगी। इस प्रकार मदार का यह पौधा मनुष्य के लिए देव कृपा, रक्षक एवं समृद्धिदाता है।

सफेद मदार की जड़ में गणेशजी का वास होता है, कभी-कभी इसकी जड़ गणशेजी की आकृति ले लेती है। इसलिए सफेद मदार की जड़ कहीं से भी प्राप्त करें और उसकी श्रीगणेश की प्रतिमा बनवा लें। उस पर लाल सिंदूर का लेप करके उसे लाल वस्त्र पर स्थापित करें। यदि जड़ गणेशाकार नहीं है, तो किसी कारीगर से आकृति बनवाई जा सकती है। शास्त्रों में मदार की जड़ की स्तुति इस मंत्र से करने का विघान है-

चतुर्भुज रक्ततनुंत्रिनेत्रं पाशाकुशौ मोदरक पात्र दन्तो।
करैर्दधयानं सरसीरूहस्थं गणाधिनाभंराशि चूùडमीडे।।

गणेशोपासना में साधक लाल वस्त्र, लाल आसान, लाल पुष्प, लाल चंदन, मूंगा अथवा रूद्राक्ष की माला का प्रयोग करें। नेवैद्य में गुड़ व मूंग के लड्डू अर्पित करें। "ऊँ वक्रतुण्डाय हुम्" मंत्र का जप करें। श्रद्धा और भावना से की गई श्वेतार्क की पूजा का प्रभाव थोड़े बहुत समय बाद आप स्वयं प्रत्यक्ष रू प से अनुभव करने लगेंगे।

तन्त्र शास्त्र में श्वेतार्क गणपति की पूजा का विधान है | यह आम लक्ष्मी व गणपति की प्रतिमाओं से भिन्न होती है | यह प्रतिमा किसी धातु अथवा पत्थर की नहीं बल्कि जंगल में पाये जाने वाले एक पोधे को श्वेत आक के नाम से जाना जाता है।

इसकी जड़ कम से कम 27 वर्ष से जयादा पुरानी हो उसमें स्वत: ही गणेश जी की प्रतिमा बन जाती है | यह प्रक्रति का एक आश्चर्य ही है | श्वेत आक की जड़ (मूल ) यदि खोदकर निकल दी जाये तो निचे की जड़ में गणपति जी की प्रतिमा प्राप्त होगी | इस प्रतिमा का नित्य पूजन करने से साधक को धन-धान्य की प्राप्ति होती है | यह प्रतिमा स्वत: सिद्ध होती है | तन्त्र शास्त्रों के अनुसार ऐशे घर में यंहा यह प्रतिमा स्थापित हो , वंहा रिद्धी-सिद्ध तथा अन्नपूर्णा देवी वस् करती है।

श्वेतार्क की प्रतिमा रिद्धी-सिद्ध की मालिक होती है जिस व्यक्ति के घर में यह गणपति की प्रतिमा स्थापित होगी उस घर में लक्ष्मी जी का निवास होता है तथा जंहा यह प्रतिमा होगी उस स्थान में कोई भी शत्रु हानी नहीं पहुंचा सकता। इस प्रतिमा के सामने नित्य बैठकर गणपति जी का मूल मन्त्र जपने से गणपति जी के दर्शन होते हैं तथा उनकी क्रपा प्राप्त होती है।

श्वेतक आक की गणपति की प्रतिमा अपने पूजा स्थान में पूर्व दिशा की तरफ ही स्थापित करें  ' ओम गं गणपतये नम:' मन्त्र का प्रतिदिन जप करे जप के लिए लाल रंग का आसन प्रयोग करें तथा श्वेत आक की जड़ की माला से यह जप करें तो जप कल में ही साधक की हर मनोकामना गणपति जी पूरी करते हैं।

व्यापार स्थल पर किसी भी प्रकार की समस्या हो तो वहां श्वेतार्क गणपति तथा  की स्थापना करें।

स्वास्थ्य और धन के लिए श्वेत आर्क गणपति: श्वेतार्क वृक्ष से सभी परिचित हैं। इसे सफेद आक, मदार, श्वेत आक, राजार्क आदि नामों से जाना जाता है । सफेद फूलों वाले इस वृक्ष को गणपति का स्वरूप माना जाता है । इसलिए प्राचीन ग्रंथों के अनुसार जहां भी यह पौधा रहता है, वहां इसकी पूजा की जाती है । इससे वहां किसी भी प्रकार की बाधा नहीं आती। वैसे इसकी पूजा करने से साधक को काफी लाभ होता है।

अगर रविवार या गुरूवार के दिन पुष्प नक्षत्र में विधिपूर्वक इसकी जड़ को खोदकर ले आएं और पूजा करें तो कोई भी विपत्ति जातकों को छू भी नहीं सकती । ऐसी मान्यता है कि इस जड़ के दर्शन मात्र से भूत-प्रेत जैसी बाधाएं पास नहीं फटकती। अगर इस पौधे की टहनी तोड़कर सुखा लें और उसकी कलम बनाकर उसे यंत्र का निर्माण करें , तो यह यंत्र तत्काल प्रभावशाली हो जाएगा। इसकी कलम में देवी सरस्वती का निवास माना जाता है। वैसे तो इसे जड़ के प्रभाव से सारी विपत्तियां समाप्त हो जाती हैं।

इसकी जड़ में दस से बारह वर्ष की आयु में भगवान गणेश की आकृति का निर्माण होता है। यदि इतनी पुरानी जड़ न मिले तो वैदिक विधि पूर्वक इसकी जड़ निकाल कर इस जड़ की लकड़ी में गणेश जी की प्रतिमा या तस्वीर बनाएं। यह आपके अंगूठे से बड़ी नहीं होनी चाहिए। इसकी विधिवत पूजा करें। पूजन में लाल कनेर के पुष्प अवश्य इस्तेमाल में लांए। इस मंत्र ‘‘ ऊँ पंचाकतम् ऊँ अंतरिक्षाय स्वााहा ’’ से पूजन करें और इसके पश्चात इस मंतर
‘‘ ऊँ ह्रीं पूर्वदयां ऊँ ही्रं फट् स्वाहा ’’ से 108 आहुति दें।

लाल कनेर के पुष्प शहद तथा शुद्ध गाय के घी से आहुति देने का विधान है। इसके बाद 11 माला जप नीचे लिखे मंत्र का करें और प्रतिदिन कम से कम 1 माला करें। ‘‘ ऊँ गँ गणपतये नमः ’’ का जप करें । अब ’’ ऊँ ह्रीं श्रीं मानसे सिद्धि करि ह्रीं नमः ’’ मंत्र बोलते हुए लाल कनेर के पुष्पों को नदी या सरोवर में प्रवाहित कर दें।

धार्मिक दृष्टि से श्वेत आक को कल्प वृक्ष की तरह वरदायक वृक्ष माना गया है। श्रद्धा पूर्वक नतमस् तक होकर इस पौधे से कुछ माँगन पर यह अपनी जान देकर भी माँगने वाले की इच्छा पूरी करता है । यह भी कहा गया है कि इस प्रकार की इच्छा शुद्ध होनी चाहिए।

ऐसी आस्था भी है कि इसकी जड़ को पुष्प नक्षत्र में विशेष विधिविधान के साथ जिस घर में स्थापित  किया जाता है वहाँ स्थायी रूप से लक्ष्मी का वास बना रहता है और धन धान्य की कमी नहीं रहती । श्वेतार्क के ताँत्रिक, लक्ष्मी प्राप्ति, ऋण नाशक, जादू टोना नाशक, नजर सुरक्षा के इतने प्रयोग हैं कि पूरी किताब लिखी जा सकती है।

थोड़ी सी मेहनत कर आप भी अपने घर के आसपास या किसी पार्क आदि में श्वेतार्क का पौधा प्राप्त कर सकते हैं। श्वेतार्क गणपति घर में स्थापित   करने से सिर्फ गणेश जी ही नहीं बल्कि माता लक्ष्मी और भगवान शिव की भी विशेष कृपा प्राप्त होती है । सिद्धी की इच्छा रखने वालों को 3 मास तक इसकी साधन करने से सिद्धी प्राप्त होती है। जिनके पास धन न रूकता हो या कमाया हुआ पैसा उल्टे सीधे कामों में जाता हो उन्हें अपने घर में श्वेतार्क गणपति की स्थापना करनी चाहिए।

जो लोग कर्ज में डूबे हैं उनके लिए कर्ज मुक्ति का इससे सरल अन्य कोई उपाय नहीं है। जो लोग ऊपरी बाधाओं और रोग विशेष से ग्रसित हैं इसकी पूजा से वायव्य बाधाओं से तुरंत मुक्ति और स्वास्थ्य में अप्रत्याशित लाभ पा सकते हैं । जिनके बच्चों का पढ़ने में मन न लगता हो वे इसकी स्थापना कर बच्चों की एकाग्रता और संयम बढ़ा सकते है। पुत्रकाँक्षी यानि पुत्र कामना करने वालों को गणपति पुत्रदा स्त्रोत का पाठ करना चाहिए।

श्वेतार्क गणेश साधना: हिन्दू धर्म में भगवान गणेश को अनेक रूप में पूजा जाता है इनमें से ही एक श्वेतार्क गणपति भी है । धार्मिक लोक मान्ताओं में धन, सुख-सौभाग्य समृद्धि ऐश्वर्य और प्रसन्नता के लिए श्वेतार्क के गणेश की मूर्ति शुभ फल देने वाली मानी जाती है।

श्वेतार्क के गणेश आक के पौधे की जड़ में बनी प्राकृतिक बनावट रूप में प्राप्त होते हैं । इसे पौधे की एक दुर्लभ जाति सफेद श्वेतार्क होती है जिसमें सफेद पत्ते और फूल पाए जाते हैं इसी सफेद श्वेतार्क की जड़ की बाहरी परत को कुछ दिनों तक पानी में भिगोने के बाद निकाला जाता है तब इस जड़ में भगवान गणेश की मूरत दिखाई देती है।

इसकी जड़ में सूंड जैसा आकार तो अक्सर देखा जा सकता है । भगवान श्री गणेश जी को ऋद्धि-सिद्धि व बुद्धि के दाता माना जाता है । इसी प्रकार श्वेतार्क नामक जड़ श्री गणेश जी का रूप मानी जाती है श्वेतार्क सौभाग्यदायक व प्रसिद्धि प्रदान करने वाली मानी जाती है । श्वेतार्क की जड़ श्री गणेशजी का रूप मानी जाती है।

श्वेतार्क सौभाग्यदायक व प्रसिद्धि प्रदान करने वाली मानी जाती है । श्वेतार्क की जड़ को तंत्र प्रयोग एवं सुख-समृद्धि हेतु बहुत उपयोगी मानी जाती है । गुरू पुष्प नक्षत्र में इस जड़ का उपयोग बहुत ही शुभ होता है । यह पौधा भगवान गणेश के स्वरूप होने के कारण धार्मिक आस्था को और गहरा करता है।

श्वेतार्क गणेश पूजन: श्वेतार्क गणपति की प्रतिमा को पूर्व दिशा की तरफ ही स्.थापित करना चाहिए तथा श्वेत आक की जड़ की माला से यह गणेश मंत्रों का जप करने से सर्वकामना सिद्ध होती है । श्वेतार्क गणेश पूजन में लाल वस्त्र, लाल आसान, लाल पुष्प, लाल चंदन, मूंगा अथवा रूद्राक्ष की माला का प्रयोग करनी चाहिए।

नेवैद्य में लडडू अर्पित करने चाहिए ‘‘ ऊँ वक्रतुण्डाय हुम् ’’ मंत्र का जप करते हुए श्रद्धा व भक्ति भाव के साथ श्वेतार्क की पूजा कि जानी चाहिए पूजा के श्रद्धा व भक्ति भाव के साथ श्वेतार्क की पूजा कि जानी चाहिए पूजा के प्रभावस्वरूप् प्रत्यक्ष रूप से इसके शुभ फलों की प्राप्ति संभव हो पाती है।

तन्त्र शास्त्र में भी श्वेतार्क गणपति की पूजा का विशेष बताया गया है । तंत्र शास्त्र अनुसार घर में इस प्रतिमा को स्ािापित करने से ऋद्धि-सिद्धि कि प्राप्ति होती है । इस प्रतिमा का नित्य पूजन करने से भक्त को धन-धान्य की प्राप्ति होती है तथा लक्ष्मी जी का निवास होता है । इसके पूजन द्वारा शत्रु भय समाप्त हो जाता है । श्वेतार्क प्रतिमा के सामने नित्य गणपति जी का मंत्र जाप करने से गणेशजी का आर्शिवाद प्राप्त होता है तथा उनकी कृपा बनी रहती है।

श्वेतार्क गणेश महत्व: दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजन के साथ ही श्वेतार्क गणेश जी का पूजन व अथर्वशिर्ष का पाठ करने से बंधन दूर होते हैं और कार्यों में आई रूकावटें स्वत: ही दूर हो जाती है । धन की प्राप्ति हेतु श्वेतार्क की प्रतिमा को दीपावली की रात्रि में षडोषोपचार पूजन करना चाहिए।

श्वेतार्क गणेश साधना अनेकों प्रकार की जटिलतम साधनाओं में सर्वाधिक सरल एवं सुरक्षित साधना है । श्वेतार्क गणपति समस्त प्रकार के विघनों के नाश के लिए सर्वपूजनीय है । श्वेतार्क गणपति की विधिवत स्थापना  और पूजन से समस्त कार्य साधानाएं आदि शीघ्र निर्विघं संपन्न होते है।

श्वेतार्क गणेश के सम्मुख मंत्र का प्रतिदिन 10 माला जप करना चाहिए तथा ‘‘ ऊँ नमो हस्ति - मुखाय लम्बोदराय उच्छिष्ट - महात्मने आं क्रों हीं क्लीं ह्रीं हूं घे घे उच्छिष्टाय स्वाहा ’’ साधना से सभी इष्ट कार्य सिद्ध होते हैं।