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Tuesday, March 1, 2011

शिव शंकर


ॐ शरणम् तरुनेदु सेखर शरणम् में गिरिराज कन्यका |शरणम् पुन रेव ता उभो शरणम् नान्यादुपेती देवतं ||

शिवरात्रि को रात पूजा क्यों ?


शिवरात्रि को रात में ही पूजा क्यों ? जिस प्रकार नदी में ज्वार - भाटा होता हे उसी प्रकार इस विराट ब्रहमांड मेंसृष्टि और प्रलयके दो विभिनमुखी स्रोत नित्य बह रहे हे | मानचित्रमें जेसे पृथ्वीके विस्तार को छोटे से आकार मेंपाकर उसे पकड़ लेना हमारे लिये सहज हो जाता हे वेसे ही इस विराट ब्रहमांड में सृष्टि और प्रलय के जो सुदीर्घ स्रोतप्रवाहित हो रहे हे दिवस और रात्रि की क्षुद्र सीमा में उन्हें बहुत छोटे आकार में प्राप्तकर उसे अधिगत करना हमारेलिये संभव हे | शास्त्र में भी दिवस और रात्रि को नित्य सृष्टि और नित्य प्रलय कहा गया हे | एक से अनेक औरकारन से कार्य की और जाना ही सृष्टि हे और ठीक इसके विपरीत अर्थात अनेक से एक और कार्य से कारन की औरजाना ही प्रलय हे | दिन में हमारा मन , प्राण और इन्द्रिया हमारे आत्मा के समीप से भीतर से बाहर विषय -राज्यकी ओर दोड़ती हे ओर विस्यानंद में ही मग्न रहती हे | पुनः रात्रि में विषयों को छोड़कर आत्मा की ओर अनेक कोछोड़कर एक की ओर शिव की ओर प्रवुत होती हे |हमारा मन दिन में प्रकाश की ओर सृष्टि की ओर भेद भाव कीओर अनेककी ओर जगत की ओर कर्मकांड की ओर जाता हे और पुनः रात्रि में लौटता हे अंधकार की और लय कीओर अभेद की ओर एककि ओर ,परमात्मा की ओर और प्रेम की ओर | दिन में कारन से कार्य की ओर जाता हे औररात्रि में कार्य से कारन की ओर लौट आता हे | इसीसे दिन सृष्टि का और रात्रि प्रलय का द्योतक हे | ' नेति नेति ' कीप्रक्रिया के द्वारा समस्त भूतो का अस्तित्व मिटाकर समाधियोग में परमात्मासे आत्मसमाधान की साधना ही शिवकी साधना हे | इसी लिये रात्रि ही इसका मुख्य काल -- अनुकूल समय हे |प्रकृति की स्वाभाविक प्रेरणा से उससमय प्रेम -साधना ,आत्मनिवेदन ,एकत्मानुभुती सहज ही सुन्दर हो उठती हे जय शंकर