अक्ष वक्षे महादेविम्
मातंगिम सर्वसिद्धीदाम्॥
अस्याः सेवन मात्रेण
वाक्सिद्धिम् लभते ध्रुवं॥ 1 ॥
अर्थात् - माँ मातंगी की उपासना पूर्व काल में ऋषि मुनि करते थे और यही देवी को ब्रह्मवाक्य बोलते है। सभी ब्राम्हनो को इनकी पूजा अवस्य करनी चाहिए ।उनकी चार भुजाए चार वेद है।इनके चार भिन्न स्वरुप है। रक्त आसन पर बेठ कर उनकी पूजा होती है। रिम बीज का उच्चारण भी श्रेष्ठ बताया गया है। ये मतंग मुनि की कन्या भी कही जाती है । उनके पास एक शुक है जिसको व्याकरण कहा गया है। और उनकी उत्पत्ति मतंग मुनि की तपस्या से हुई थी। माँ षोडशी की नेत्रों में से। अतः उनकी उपासना वेद पढ़ने वा लो के लिए उत्तम मानी गयी है।।
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