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Sunday, October 26, 2014

संस्कृत सुभाषितानि


विवेक: सह संपत्या
विनयो विद्यया सह।
प्रभुत्वं प्रश्रयोपेतं चिन्हमेतन्महात्मनाम्॥
अर्थात :-
संपत्ति के साथ विवेक, विद्या के साथ विनय और शक्ति के साथ दूसरों की सुरक्षा, ये महापुरुषों के लक्षण हैं॥

Friday, October 24, 2014

नाद

"नाद"
(व्यक्ति में हीर है हीै, लेकिन उसको तरासने वाला कोई सद्गुरु मिल जाए।) तो वह हीरा बन जाता है।
       {हीरा-dimond}
किसी खदान के भीतर अत्यंत गहराई में पड़े हुए हीरे को अपने आप को क्या और कैसा मानना चाहिये ?

क्या वह हीरा यह माने कि वह हीरा बनने की पात्रता रखता है ?

क्या हीरे को अपने ऊपर पड़ी हुई पहाड़ सरीखी बुराई रुपी मिटटी-पत्थरों को अपनी अशुद्धि मान कर अपने आप को बीज रूप मानना चाहिये ?

फिर उसे हटाने में अपना समय खर्च करना चाहिये ? 

जब पहाड़ सरीखी बुराई रुपी मिटटी-पत्थर नष्ट हो जाएँ, तभी उसे अपने को बीज से पेड़ रुपी शुद्ध परमात्मा मानना चाहिये ?

या फिर उस हीरे को यह मानना चाहिए कि वह आज और अभी और हमेशा से हीरा ही है । उसके हीरक-द्रव्य में किसी भी तरह की अशुद्धि का प्रवेश न पहले था, न अभी है और न ही आगे कभी भी होगा ।

हे पुण्यवंत, वह हीरा आप ही हो । आपके आत्मा में किसी भी तरह की अशुद्धि का प्रवेश न पहले था, न अभी है और न ही आगे कभी भी होगा । इस बात को स्वीकार करते ही आपका मुक्ति-पथ की ओर गमन शुरू हो जाएगा।।
  *एक शेर अर्ज करता हूँ।
जहर भी उसका और नूर भी उसका।
फिर न देखे तो कुसूर किसका?*
          *श्रीव्रजेशभाई*
            "कृतार्थोहं"

Thursday, October 23, 2014

रूपचतुर्दशी

"नाद"
(मेरे मित्रों को रूपचतुर्दशी की मङलकामना) अपने रूप से प्रभु स्वरूप की प्राप्ति)
**आज का दिन नरक चतुर्दशी के रूप में भी मनाया जाता है।*** कथाओं के अनुसार आज ही के दिन भगवान कष्ण ने नरकासुर नाम के दैत्य का संहार किया था। आज के दिन मृत्यु के देवता यमराज के लिए दीप दान भी किया जाता है।
नरक चतुर्दशी की कथा: पुराने समय की बात है रन्तिदेवी नाम के राजा हुए थे। रन्तिदेवी अपने पूर्व जन्म में काफी धार्मिक व दानी थे, इस जन्म में भी दान पुण्य में ही समय बिताया था। कोई पाप किया याद न था, लेकिन जब अंतिम समय आया तो यमदूत लेने आए। राजा ने यमदूतों से पूछा कि मैंने तो काफी दान पुण्य किया है कोई पाप नहीं किया फिर यमदूत क्यों आए हैं। मतलब मैं नरक में जांऊगा।
राजा रन्तिदेवी ने यमदूतों से एक वर्ष की आयु की माँग की। यमदूतों ने राजा की प्रार्थना स्वीकार कर ली और बताया कि एक बार तुम्हारे द्वार से एक ब्राह्मण भूखा वापस लौट गया था इस कारण नरक भोगना पडेग़ा।
राजा ने ऋषि मुनियों से जाकर अपनी व्यथा बताई। ऋषियों ने कहा कि राजन् तुम कार्तिक मास की कष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करो और इस ब्राह्मणों को भोजन कराओ और अपना अपराध सबके सामने स्वीकार कर क्षमा याचना करो। ऐसा करने से तुम पाप से मुक्त हो जाओगे।
राजा ने ब्राह्मणों के कहे अनुसार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को व्रत रखा व सब पापों से मुक्त हो विष्णु लोक चला गया।
रूप चतुर्दशी: आज का दिन रूप चतुर्दशी के रूप में भी मनाया जाता है। कहते हैं कि आज के भगवान कृष्ण की पूजा करने से सुन्दरता मिलती है।
कथा: पुराने जमाने की बात है हिरण्यगर्भ नाम के स्थान पर एक योगीराज रहते थे। उन्होंने भगवान की घोर आराधना शुरू की। समाधि लगाए कुछ दिन ही बीते थे कि उनके शरीर में कीडे पड़ गए और पूरे शरीर में जुएं हो गर्इं। योगीराज को काफी दुख हुआ।
नारद मुनि उस समय वहाँ से निकले और योगीराज के दुख का कारण पूछा। योगीराज ने अपना दुख बताया तो नारद बोले कि हे योगीराज आपने देह आचार का पालन नहीं किया इसलिए आपकी ये दशा हुई है। अब आप कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को व्रत रख भगवान का स्मरण करे व पूजा करे तो आपकी देह पहले जैसी हो जाएगी व आप रूप सौन्दर्य को प्राप्त करगे।
योगीराज ने नारद मुनि के कहे अनुसार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को व्रत किया और भगवान कृष्ण की पूजा आराधना की और रूप सौन्दर्य को प्राप्त किया।
छोटी दीपावली या कानी दीपावली
आज का दिन छोटी दीपावली का कानी दीपावली के तौर पर भी जाना जाता है। आज के दिन स्नान आदि से शुध्द हो कर एक थाली में एक चौमुखी दीपक और सोलह छोटे दीपक लेकर तेल बाती डालकर जलाना चाहिए। फिर रोली, धूप, अबीर, गुलाल, गुड़, फूल आदि से पूजा करें व पूजन करें। यह पूजन स्त्रियों को घर के पुरुषों के बाद करना चाहिए। पूजा के बाद चौमुखी दीपक को घर के मुख्य द्वार पर रख दें और बाकी दीपक घर के अलग अलग स्थानों पर रख दें। माँ लक्ष्मी की पूजा भी आज की जाती है।
            *श्रीव्रजेशभाई*
              *कृतार्थोहं*

Wednesday, October 22, 2014

HAPPY DIWALI

त्वं ज्योतिस्तवं रविश्चन्द्रो विद्युताग्निश्च तारकाः |
सर्वेषां ज्योतिषां ज्योतिर्दीपावल्यै नमो नमः ||

Saturday, October 11, 2014

मातंगी

अक्ष वक्षे महादेविम्
मातंगिम सर्वसिद्धीदाम्॥
अस्याः सेवन मात्रेण
वाक्सिद्धिम्  लभते ध्रुवं॥ 1 ॥

अर्थात् - माँ मातंगी की उपासना पूर्व काल में ऋषि मुनि करते थे और यही देवी को ब्रह्मवाक्य बोलते है। सभी ब्राम्हनो को इनकी पूजा अवस्य करनी चाहिए ।उनकी चार भुजाए चार वेद है।इनके चार भिन्न स्वरुप है। रक्त आसन पर बेठ कर उनकी पूजा होती है। रिम बीज का उच्चारण भी श्रेष्ठ बताया गया है। ये मतंग मुनि की कन्या भी कही जाती है । उनके पास एक शुक है जिसको व्याकरण कहा गया है। और उनकी उत्पत्ति मतंग मुनि की तपस्या से हुई थी। माँ षोडशी की नेत्रों में से। अतः उनकी उपासना वेद पढ़ने वा लो के लिए उत्तम मानी गयी है।।

Friday, October 10, 2014

ग्रह मंत्र, दान, जापसंख्या, समिध,

॥श्री गणेशाय नम:॥

। ९ ग्रह मंत्र, दान, जापसंख्या, समिध, तथा अधि-प्रत्यघि ।

(१) ग्रह - सूर्य
   अधिदेव - इश्र्वर
  प्रत्यधिदेव - अग्नि
   समिधा - आंकडो
मंत्र-॥जपाकुसुमसंकाशं
         काश्यपेयं महाद्युतिम्
         तमोरि सर्वपापघ्नं
         प्रणतोस्मि दिवाकर ॥
बीजमंत्र- ॥ॐ घृणिः सूर्याय नम:॥
जपसंख्या- ७०००
कलिकाल- २८०००
दान-लालवस्त्र, घउ, लालफुल, त्रांबु, गुड
सूर्य नु रत्न - माणेक

(२) ग्रह- चंद्र
अधिदेव- उमा
प्रत्यधिदेव- अद्म्भय:
समिधा - खाखरो
मंत्र-॥दधिशंखतुषाराभं
        क्षीरोदार्णवसंभवम्
        नमामि शशिनं सोमं
        शंभोर्मुकटभूषणम् ॥
बीजमंत्र-॥ॐ सों सोमाय नम:॥
जापसंख्या- ११०००
कलिकाल- ४४०००
दान- सफेदवस्त्र, चोखा, सफेदफुल, कांस्यपात्र, साकर
चंद्र नु रत्न- मोती

(३) ग्रह- मंगल
अधिदेव - स्कन्द
प्रत्यधिदेव - पृथ्वी
समिधा - खेर
मंत्र-॥धरणीगर्भसंभूतं
         विद्युत्कान्तिसमप्रभम्
         कुमारं शक्तिहस्तं च
         मंगलं प्रणमाम्यहम् ॥
बीजमंत्र-॥ॐ अं अंगारकाय नम:॥
जापसंख्या- १००००
कलिकाल-  ४००००
दान- लालवस्त्र, मसूर नी दाल, करण नु फुल, त्रांबु, गुड
मंगल नु रत्न - परवालु

(४) ग्रह- बुध
अधिदेव- विष्णु
प्रत्यधिदेव- विष्णु
समिधा- अघेडो
मंत्र-॥प्रियंगुकलिकाश्यामं
         रुपेणाप्रतिमं बुधम्
         सौम्यं सौम्यगुणोपेतं
         तं बुधं प्रणमाम्यहम् ॥
बीजमंत्र-॥ॐ बुं बुधाय नम:॥
जापसंख्या- ४०००
कलिकाल- १६०००
दान- लीलुवस्त्र, मग, सुगंधित पुष्प, कांस्यपात्र, घी
बुध नु रत्न- पन्ना

(५) ग्रह- बृहस्पति
अधिदेव- ब्रह्मा
प्रत्यधिदेव- इन्द्र
समिधा- पीपल
मंत्र-॥देवानां च ऋषीणां च
         गुरु कांचनसन्निभम्
         बुध्धिभूतं त्रिलोकेशं
         तं नमामि बृहस्पतिम् ॥
बीजमंत्र-॥ॐ बृं बृहस्पतये नम:॥
जाप संख्या- १९०००
कलिकाल- ७६०००
दान- पीतवस्त्र, चणादाल, पीलुफुल, सुवर्ण, खांड
बृहस्पति नु रत्न- पुखराज

(६) ग्रह- शुक्र
अधिदेव- इन्द्र
प्रत्यधिदेव- इन्द्राणी
समिधा- उम्बरो
मंत्र-॥हिमकुंदमृणालाभं
         दैत्यानां परमं गुरुम्
         सर्वशास्त्र प्रवक्तारं
         भार्गवं प्रणमाम्यहम् ॥
बीजमंत्र-॥ॐशुं शुक्राय नम:॥
जाप संख्या- १६०००
कलिकाल- ६४०००
दान- सफेदवस्त्र, चोखा, सफेदफुल, चांदी, साकर
शुक्र नु रत्न- हीरो

(७) ग्रह- शनि
अधिदेव- यम
प्रत्यधिदेव- प्रजापति
समिधा- खीजडो
मंत्र-॥निलांजन समाभासं
         रविपुत्रं यमाग्रजम्
         छायामार्तण्ड संभूतं
         तं नमामि शनिश्र्चरम् ॥
बीजमंत्र-॥ॐ शं शनैश्चराय नम:॥
जपसंख्या- २३०००
कलिकाल- ९२०००
दान-कृष्णवस्त्र, अडद, कृष्णपुष्प, लोखंड, तेल
शनि नु रत्न- निलम

(८) ग्रह- राहु
अधिदेव-काल
प्रत्यधिदेव-सर्प
समिधा- दूर्वा

मंत्र-॥अर्धकायं महावीर्य
         चन्द्रादित्यविमर्दनम्
         सिंहिकागर्भसंभूतं
         तं राहु प्रणामाम्हयम् ॥
बीजमंत्र-॥ॐ रां राहवे नम:॥
जापसंख्या- १८०००
कलिकाल-  ७२०००
दान- कृष्णवस्त्र, कृष्णतिल, कृष्णपुष्प, लोखंड, तेल
राहु नु रत्न- गोमेद

(९) ग्रह- केतु
अधिदेव- चित्र्गुप्त
प्रत्यधिदेव- ब्रह्मा
समिधा- दर्भ
मंत्र-॥पलाशपुष्प संकाशं
         तारकाग्रह मस्तकम्
         रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं
         तं केतु प्रणमाम्यहम् ॥
बीजमंत्र-॥ॐ केतवे नम:॥
जापसंख्या- १८०००
कलिकाल-  ७२०००
दान- धूम्रवर्ण नु वस्त्र, सातधान, श्रीफल, पुष्प, लोखंड
राहु नु रत्न- वैदूर्य(लसणीयु)

        ९ ग्रह अधि- प्रत्यधि समिध

ग्रह      अधि      प्रत्यधि     समिध
।          ।            ।             ।
सूर्य     ईश्र्वर     अग्नि       आंकडो
चंद्र      उमा       अद्भ्य     खाखरो
मंगल   स्कन्द     पृथ्वी        खेर
बुध     विष्णु      विष्णु       अघेडो
गुरु     ब्रह्मा       इन्द्र         पीपल
शुक्र    इन्द्र       इन्द्राणी      उम्बरो
शनि    यम       प्रजापति   खीजडो
राहु    काल       सर्प          घ्रोखल
केतु   चित्र्गुप्त   ब्रह्मा         दर्भ


  ।लोकपाल।        ।दिक्पपाल।
१- गणपति          १- इन्द्र
२- दुर्गा               २- अग्नि
३- वायु               ३- यम
४- आकाश          ४- नैऋति
५- अश्र्विनौ         ५- वरुण
६- वास्तोष्पति      ६- वायु
७- क्षेत्रपाल          ७- कुबेर
                          ८- इश्र्वर
                          ९- ब्रह्मा
                        १०- अनंत