महाशिवरात्रि - महोत्सव
(माघ कृष्ण चतुर्दशी ) उतर भारत में (फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी)
शिवरात्रि का अर्थ वह रात्रि हे जिसका शिवतत्त्व के साथ घनिष्ठ संबन्ध हे । भगवान शिवजी की अतिप्रिय रात्रि को 'शिवरात्रि ' कहा गया हे ।
शिवार्चन और जागरण ही इस व्रत की विशेषता हे । इसमें रात्रिभर जागरण एवं शिवाभिषेक का विधान हे ।
श्री पार्वतीजी की जिज्ञासा पर भगवान शिवजी ने बताया की फाल्गुन (माघ) कृष्णपक्ष की चतुर्दशी शिवरात्रि कहलाती हे । जो उस दिन उपवास करता हे , वह मुझे प्रसन्न कर लेता हे । में अभिषेक ,वस्त्र,धुप,अर्चन तथा पुष्पादि समर्पण से उतना प्रसन्न नहीं होता जितना की व्रतोपवास से --
फ़ाल्गुने कृष्ण पक्षस्य या तिथि:स्याच्चतुर्दशी |
तस्यां या तामसी रात्रि: सोच्यते शिवरात्रि का ||
तत्रोपवासं कुर्वाण : प्रसादयति मां ध्रुवम् |
न स्न्नानेन न वस्त्रेण न धूपेन न चार्चया |
तुष्यामि न तथा पुष्पेर्यथा तत्रोपवासत : ||
ईशान संहिता में बताया गया हे कि फाल्गुन (माघ )कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि को आदिदेव भगवान श्री शिव करोडों सूर्यो के समान प्रभावाले लिंगरुप में प्रकट हुए ।
फ़ाल्गुन कृष्ण चतुर्दश्यामादिदेवो महानिशि |
शिवलिङ्गतयोद्भुत : कोटिसूर्यसम प्रभ : ||
चार प्रहर की पूजा का विधान
चार प्रहर में चार बार पूजा का विधान हे । इसमें शिवजी को पंचामृत से स्नान कराकर चन्दन , पुष्प, अक्षत, वस्त्रादि से श्रुंगार कर आरती करनी चाहिये । रात्रिभर जागरण तथा पञ्चाक्षर - मन्त्र का जप करना चाहिये । रुद्राभिषेक,रुद्राष्टाध्यायी तथा रुद्री पाठ का भी विधान हे ।
शिवरात्रि व्रत की वैज्ञानिकता तथा आध्यात्मिकता
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार फाल्गुन (माघ)कृष्ण चतुर्दशी तिथिमें चन्द्रमा सूर्य के समीप होता हे । अत: वही समय जीवनरूपी चन्द्रमाका शिवरूपी सूर्यके साथ योग - मिलन होता हे । अत: इस चतुर्दशीको शिवपूजा करनेसे जिवको अभीष्टतम पदार्थकी प्राप्ति होती हे । यही शिवरात्रि का रहस्य हे ।
महाशिवरात्रिका पर्व शिव के दिव्य अवतरणका मंगल सूचक हे । उनके निराकारसे साकार रुपमे अवतरण की रात्रि ही महाशिवरात्रि कहलाती हे । वे हमें काम,क्रोध , लोभ , मोह,मत्सरादी विकारोंसे मुक्त करके परम सुख,शांति,एश्वर्यादी प्रदान करते हे ।
(माघ कृष्ण चतुर्दशी ) उतर भारत में (फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी)
शिवरात्रि का अर्थ वह रात्रि हे जिसका शिवतत्त्व के साथ घनिष्ठ संबन्ध हे । भगवान शिवजी की अतिप्रिय रात्रि को 'शिवरात्रि ' कहा गया हे ।
शिवार्चन और जागरण ही इस व्रत की विशेषता हे । इसमें रात्रिभर जागरण एवं शिवाभिषेक का विधान हे ।
श्री पार्वतीजी की जिज्ञासा पर भगवान शिवजी ने बताया की फाल्गुन (माघ) कृष्णपक्ष की चतुर्दशी शिवरात्रि कहलाती हे । जो उस दिन उपवास करता हे , वह मुझे प्रसन्न कर लेता हे । में अभिषेक ,वस्त्र,धुप,अर्चन तथा पुष्पादि समर्पण से उतना प्रसन्न नहीं होता जितना की व्रतोपवास से --
फ़ाल्गुने कृष्ण पक्षस्य या तिथि:स्याच्चतुर्दशी |
तस्यां या तामसी रात्रि: सोच्यते शिवरात्रि का ||
तत्रोपवासं कुर्वाण : प्रसादयति मां ध्रुवम् |
न स्न्नानेन न वस्त्रेण न धूपेन न चार्चया |
तुष्यामि न तथा पुष्पेर्यथा तत्रोपवासत : ||
ईशान संहिता में बताया गया हे कि फाल्गुन (माघ )कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि को आदिदेव भगवान श्री शिव करोडों सूर्यो के समान प्रभावाले लिंगरुप में प्रकट हुए ।
फ़ाल्गुन कृष्ण चतुर्दश्यामादिदेवो महानिशि |
शिवलिङ्गतयोद्भुत : कोटिसूर्यसम प्रभ : ||
चार प्रहर की पूजा का विधान
चार प्रहर में चार बार पूजा का विधान हे । इसमें शिवजी को पंचामृत से स्नान कराकर चन्दन , पुष्प, अक्षत, वस्त्रादि से श्रुंगार कर आरती करनी चाहिये । रात्रिभर जागरण तथा पञ्चाक्षर - मन्त्र का जप करना चाहिये । रुद्राभिषेक,रुद्राष्टाध्यायी तथा रुद्री पाठ का भी विधान हे ।
शिवरात्रि व्रत की वैज्ञानिकता तथा आध्यात्मिकता
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार फाल्गुन (माघ)कृष्ण चतुर्दशी तिथिमें चन्द्रमा सूर्य के समीप होता हे । अत: वही समय जीवनरूपी चन्द्रमाका शिवरूपी सूर्यके साथ योग - मिलन होता हे । अत: इस चतुर्दशीको शिवपूजा करनेसे जिवको अभीष्टतम पदार्थकी प्राप्ति होती हे । यही शिवरात्रि का रहस्य हे ।
महाशिवरात्रिका पर्व शिव के दिव्य अवतरणका मंगल सूचक हे । उनके निराकारसे साकार रुपमे अवतरण की रात्रि ही महाशिवरात्रि कहलाती हे । वे हमें काम,क्रोध , लोभ , मोह,मत्सरादी विकारोंसे मुक्त करके परम सुख,शांति,एश्वर्यादी प्रदान करते हे ।
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