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Monday, May 2, 2011

नवग्रह शास्त्रोक श्लोक

: सूर्य
श्री
कश्य पश्या भज मेक मूर्ति केयूर हारम गद भूषितान्गम |
ज्ञान प्रकाशम् त्रिगुणात्मकम नमामि सूर्य भुवन प्रदीपं ||
: चन्द्र
तुषार शंखाब्ज विधि हिमांशु क्षीरोद जातं कुमुद प्रियं |
शिवस्य मुर्धनी भरणं हिमांशु नमामि नक्षत्र पति चन्द्रम ||
: मंगल
पृथ्वी सुतम मंगल मिश जातं विध्युत्प्रब्हम वृष्टि करं हरं |
चतुर्भुजम शक्ति धरं कुमारं नमामि भोमं सक्लार्ध हेतुं ||
: बुध
श्री रोहिणी नंदन मिन्दू जातं श्यामं प्रियं गुकलिका समानं |
सर्व गुणेर युक्ता मनंत वीर्यं सदबुधि दं नोमी बुधं सोम्यं ||
: गुरु
श्री वेद शास्त्रर्थ विदं सुरेशं वाचस्पति श्यित्र शिखंडी जातं |
गुरूं सुराणाम मुनिश्वरानाम ब्रहुस्पतिम चान्गिरास्म नमामि ||
: शुक्र
श्री भार्गवं वेद विदां वरिष्ट देत्याश्वरानाम परमं गुरूं |
हिरण्यगर्भा नयनं सुराणाम नमामि शुक्र भ्रुगुनंदंम ||
: शनि
श्री सूर्य पुत्रं शानिस्वराख्यम नीलांजनमभं रविजम तमुग्रं |
छायात्मजम सोरी मन्नत वीर्यं तं क्रूर दृष्टी रविजम नमामि ||
: राहू
श्री सिहिंका गर्भ समुद्भवम कायार्ध शेषं निज मूर्ध्नि रूपं |
सूर्यस्य चन्द्रस्य विमर्दकम नमामि राहुं शिखी शुस्क्भासम ||
: केतु
यत्केतु वृन्दं बलिनं रौद्रम
रौद्रत्मक्म घोर तरम जनानाम |
विमर्दनम तारक खेचरानाम नमाम्यहम धूम्र मयं केतुं ||

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