सनातन के धर्म का कोई अंत नहीं इसे जितना जानना चाहोगे उतना ही विस्तृत होता जाता है, सनातन धर्म में पृथ्वी का सेण्टर अर्थात मध्य भी बताया गया है परन्तु आज के विज्ञान को पृथ्वी का मध्य नहीं मालूम पर सनातन धर्म कहता है की पृथ्वी का मध्य इलावृत देश है जिसे जम्ब्भू द्वीप भी कहते है जिसका आकार आधे चन्द्रमा के सामान है इसके मध्य में मेरु पर्वत है जो वैगर धुय और अग्नी के सामान है जो देखने पर स्वच्छ सीसे के सामान है अर्थात दिखाए नहीं देता परन्तु इस मेरु पर्वत के आर-पार कोई भी रोशनी जा नहीं सकती चाहे वह सूर्य या नक्षत्र की ही क्यों ना रोशनी हो यही इसका प्रमाण है
इस समय यह मेरु पर्वत और इलावृत देश को बरमूडा के नाम से जाना जाता है जिसका आकार चन्द्रमा के सामान है और ठीक उसके मध्य में मेरु रूपी आज का BLACK HOLE है आज का जो BLACK HOLE है वह विष्णु जी का नाभी है जिसे ठीक ऊपर चौरासी हजार योजन अर्थात 1092000 KM ऊपर ३२ हजार योजन अर्थात 416000 KM विस्तृत प्याले के आकार में वह मेरु के शिखर पर फैला हुआ है
यही से सारे पृथ्वी के बारे में बताया गया है जिसे दिशा के द्वारा समझाया गया है सनातन धर्म में हर चीज को करने का एक सिद्धांत दिया गया है अगर आप पुराण के वक्ता है तो पुराण वक्ता का मुख उत्तर दिशा में होना चाहिय और सुनाने वाले का मुख दक्षिण दिशा में इसी तरह अगर किसी और धर्म के प्रवक्ता है तो वाचक का मुख पूर्व के तरफ और श्रोता का मुख पच्छिम के तरफ होना चाहिय
अकाशा गंगा मेरु पर्वत के ऊपर से चार भागों में विभाजित होकर पृथ्वी पर गिरती है जिसे आजकल बरमूडा का ट्रैंगल कहा जाता है जिसमे गिराने वाले कोई भी जीव वापिस नहीं मिलता
पृथ्वी के सबसे अंतिम सिरा लोकालोक पर्वत है जिसे पुष्कर द्वीप भी कहते है जहा मनुष्यों को पहुचना अत्यंत कठिन है, अगर पहुंच भी गए तो वहा तप करना अत्यंत कठिन है इससे भी अत्यंत कठिन वहा दान देना है यही पर ज्येष्ठ पुष्कर, मध्य पुष्कर और कनिष्ट पुष्कर है जिसे आजकल Ni'ihau iceland निहओ आइजलैंड कहते है इसके आगे ब्रह्मा का अण्डकटाह है जो सभी और से अन्धेरा है इसमें कोई भी जीव जंतु नहीं पाये जाते ठीक इसी के ऊपर सूर्य की स्थिति है जिसे आजकल Ka'ula iceland कउला आइजलैंड कहते है यही तक पृथ्वी का विस्तार है।।।
शेष: पुन:
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संकलन:श्रीव्रजेशभाई