यह कार्त्विर्यार्जुन भूमंडल पर सुदर्शन चक्र का अवतार माना जाता हे इनके मंत्र का जाप या स्मरण करने से गई हुई चीजे पुनः प्राप्त होती हे मंत्र इस प्रकार हे
"कार्तविर्यार्जुनो नाम राजा बाहू सहस्त्रवान |
तस्य संस्मरणादेव हृतं नष्टं च लभ्यते ||
अनुष्टुप मंत्र : कार्ताविर्यर्जुन पद के बाद नाम राजा कह कर बाहूसहस्त्र तथा वान कहना चाहिए | फिर तस्य सं स्मरणादेव तथा हृत नष्टं च कहकर लभ्यते बोलना चाहिए
All kinds of Rites ( Pujas ) & Astrology Work. Time :(tue-Sat)Evening 6.00 to 10.00 PM. Add: 394, Anand Nagar, Karelibaug,Vadodara-18. Phone : 0265-2492559 Cell: +91-9824429520.email ID:bhatt2172@gmail.com
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Saturday, April 30, 2011
Wednesday, April 27, 2011
कवी गंग
१ : गंग तरंग प्रवाह चले और कूप को नीर पीओ न पीओ
अबे हृदे रघुनाथ बसे तो और को नाम लिओ न लिओ
कर्म संजोग सुपात्र मिले तो कुपात्र को दान दिओ न दिओ
कवी गंग कहे सुन शाह अकबर एक मुरख मित्र किओ न किओ
२ : गरज
गर्ज ही अर्जुन हिज्र भये अरु गर्ज ही गोविन्द धेन चरावे
गर्ज ही द्रोपदी दासी भई अरु गर्ज ही भीम रसोई पकावे
गर्ज बरी सब लोगन में अरु गर्ज बिना कोई आवे न जावे
कवी गंग कहे सुन शाह अकबर गर्ज ही बीबी गुलाम रिजावे
३: द्रव्य की महिमा
मात कहे मेरो पुत सपूत हे बेनी कहे मेरो सुंदिर भेया
तात कहे मेरो हे कुलदीपक लोग में नाम अधिक बढ़या
नारी कहे मेरो प्राण पति हे जिनके जाके में लेऊ बलेया
कवी गंग कहे सुन शाह अकबर सब के गांठ सफ़ेद रुपैया
४ : कर्म छुपे
दिन छुपे तथवार घटे ओर सूर्य छुपते घेर्णको छायो
गजराज छुपत हे सिंह को देखत चन्द्र छुपत अमावस आयो
पाप छुपे हरी नाम को जापत कुल छुपे हे कपूत को जायो
कवी गंग कहे सुन शाह अकबर कर्म न छुपेगो छुपो छुपायो
५ : विवेक
बाल से ख्याल बड़े से विरोध अगोचर नार से ना हसिये
अजा से लाज अगन से जोर अजाने नीर में ना धसिये
बेलकू नाथ घोड़ेकु लगाम हस्ती को अंकुश से कसिये
कवी गंग कहे सुन शाह अकबर कृर से दूर सदा बसिये
६ : चंचल प्रीत
चंचल नार की प्रीत न कीजे प्रीत किये दुःख हे भारी
कबु काल परे कबु आन बने नारी की प्रीत हे प्रेम कटारी
लोह को घाव दारू से मिटे अरु दिल को घाव न जाय बिसारी
कवी गंग कहे सुन शाह अकबर नारी की प्रीत अंगार से भारी
७ : भूख
भूख में राज को तेज सब घट गयो भूख में सिद्ध की बुद्धि हारी
भूख में कामिनी काम सो तज गयी भूख में तज गयो पुरुष नारी
भूख में और व्यव्हार नहीं रहत हे भूख में रहत कन्या कुमारी
कहत कवी गंग नहीं भजन बन पडत हे चार ही वेद से भूख न्यारी
अबे हृदे रघुनाथ बसे तो और को नाम लिओ न लिओ
कर्म संजोग सुपात्र मिले तो कुपात्र को दान दिओ न दिओ
कवी गंग कहे सुन शाह अकबर एक मुरख मित्र किओ न किओ
२ : गरज
गर्ज ही अर्जुन हिज्र भये अरु गर्ज ही गोविन्द धेन चरावे
गर्ज ही द्रोपदी दासी भई अरु गर्ज ही भीम रसोई पकावे
गर्ज बरी सब लोगन में अरु गर्ज बिना कोई आवे न जावे
कवी गंग कहे सुन शाह अकबर गर्ज ही बीबी गुलाम रिजावे
३: द्रव्य की महिमा
मात कहे मेरो पुत सपूत हे बेनी कहे मेरो सुंदिर भेया
तात कहे मेरो हे कुलदीपक लोग में नाम अधिक बढ़या
नारी कहे मेरो प्राण पति हे जिनके जाके में लेऊ बलेया
कवी गंग कहे सुन शाह अकबर सब के गांठ सफ़ेद रुपैया
४ : कर्म छुपे
दिन छुपे तथवार घटे ओर सूर्य छुपते घेर्णको छायो
गजराज छुपत हे सिंह को देखत चन्द्र छुपत अमावस आयो
पाप छुपे हरी नाम को जापत कुल छुपे हे कपूत को जायो
कवी गंग कहे सुन शाह अकबर कर्म न छुपेगो छुपो छुपायो
५ : विवेक
बाल से ख्याल बड़े से विरोध अगोचर नार से ना हसिये
अजा से लाज अगन से जोर अजाने नीर में ना धसिये
बेलकू नाथ घोड़ेकु लगाम हस्ती को अंकुश से कसिये
कवी गंग कहे सुन शाह अकबर कृर से दूर सदा बसिये
६ : चंचल प्रीत
चंचल नार की प्रीत न कीजे प्रीत किये दुःख हे भारी
कबु काल परे कबु आन बने नारी की प्रीत हे प्रेम कटारी
लोह को घाव दारू से मिटे अरु दिल को घाव न जाय बिसारी
कवी गंग कहे सुन शाह अकबर नारी की प्रीत अंगार से भारी
७ : भूख
भूख में राज को तेज सब घट गयो भूख में सिद्ध की बुद्धि हारी
भूख में कामिनी काम सो तज गयी भूख में तज गयो पुरुष नारी
भूख में और व्यव्हार नहीं रहत हे भूख में रहत कन्या कुमारी
कहत कवी गंग नहीं भजन बन पडत हे चार ही वेद से भूख न्यारी
Friday, April 22, 2011
भोगे रोग भयं कुले चुत्यी भयं विते न्रुपालाद भयं
मौने देन्य भयं बले रिपु भयं रुपे जराया भयं
शास्त्रे वाद भयं गुणे खल भयं काये कृतांताद भयं
सर्व वस्तु भयान्वितम भुवि न्रुनाम वैराग्य मेवा भयं
(भर्तुहरी )
अर्थात : भोग में रोग का भय कुल में भ्रष्ट होने का भय धन में राजा का भय मौन में दीनता का भय बल में शत्रु का भय रूप में वृधावस्था का भय शास्त्र में वाद विवाद का भय गुण में मूर्खो का भय काया में काल का भय ऐसे सर्व वस्तु मनुष्यों को जगत में भयभीत करती हे मात्र वैराग्य ही अभय हे
मौने देन्य भयं बले रिपु भयं रुपे जराया भयं
शास्त्रे वाद भयं गुणे खल भयं काये कृतांताद भयं
सर्व वस्तु भयान्वितम भुवि न्रुनाम वैराग्य मेवा भयं
(भर्तुहरी )
अर्थात : भोग में रोग का भय कुल में भ्रष्ट होने का भय धन में राजा का भय मौन में दीनता का भय बल में शत्रु का भय रूप में वृधावस्था का भय शास्त्र में वाद विवाद का भय गुण में मूर्खो का भय काया में काल का भय ऐसे सर्व वस्तु मनुष्यों को जगत में भयभीत करती हे मात्र वैराग्य ही अभय हे
Wednesday, April 20, 2011
Tuesday, April 19, 2011
સંત પુનિત
દુનિયા વાંસ તણો સાંઠો, રે ડગલે દુ:ખ તણી ગાંઠો,
કંઈ કંઈ દિલમાં થાતી બળતરા, કોઈ પરણ્યો, કોઈ વાંઢો;
કોઈ કુંવારી કોઈ છે સધવા (૨),
પરણીને રાંડો... દુનિયા વાંસ તણો...
કોઈના ઘરમાં તો પ્રજા ઘણેરી, મળે નહિ આટો,
અન્ન્ તણા જ્યાં કોઠારો ભરિયા (૨),
'શેર માટી'નો વાંધો... દુનિયા વાંસ તણો...
ઘેર ઘેર છે તોફાન જાગ્યાં, ચઢે ના સવળો પાટો,
કોઈ પિતાને પુત્ર છે મળિયા (૨)
વાગે છે કાળજે કાંટો... દુનિયા વાંસ તણો...
સાર વગરના સુકા સાંઠામાં, સાર તો શાનો કાઢો ?
સુખ તો સઘળાં સુકાઈ ગયાં છે (૨),
ભરશે દુ:ખની ફાંટો... દુનિયા વાંસ તણો...
સત્સંગ એક જ સાધન એવું, તોડે દુ:ખની ગાંઠો,
'પુનિત' ઈશ્વર-ભક્તિ વિના તો (૨)
ફળે નહિ આ આંટો... દુનિયા વાંસ તણો...
સંત પુનિત
કંઈ કંઈ દિલમાં થાતી બળતરા, કોઈ પરણ્યો, કોઈ વાંઢો;
કોઈ કુંવારી કોઈ છે સધવા (૨),
પરણીને રાંડો... દુનિયા વાંસ તણો...
કોઈના ઘરમાં તો પ્રજા ઘણેરી, મળે નહિ આટો,
અન્ન્ તણા જ્યાં કોઠારો ભરિયા (૨),
'શેર માટી'નો વાંધો... દુનિયા વાંસ તણો...
ઘેર ઘેર છે તોફાન જાગ્યાં, ચઢે ના સવળો પાટો,
કોઈ પિતાને પુત્ર છે મળિયા (૨)
વાગે છે કાળજે કાંટો... દુનિયા વાંસ તણો...
સાર વગરના સુકા સાંઠામાં, સાર તો શાનો કાઢો ?
સુખ તો સઘળાં સુકાઈ ગયાં છે (૨),
ભરશે દુ:ખની ફાંટો... દુનિયા વાંસ તણો...
સત્સંગ એક જ સાધન એવું, તોડે દુ:ખની ગાંઠો,
'પુનિત' ઈશ્વર-ભક્તિ વિના તો (૨)
ફળે નહિ આ આંટો... દુનિયા વાંસ તણો...
સંત પુનિત
Thursday, April 14, 2011
श्री हनुमान - स्तुति
श्री हनुमानजी की स्तुतिसे संबंधित बारह नाम हे, जिनके द्वारा उनकी स्तुति की जाती हे|
हनुमान न्जनी सुनुर्वायुपुत्रो महाबल : |
रामेष्ट : फाल्गुन सख : पिन्गाक्षोमितविक्रम ||
उदधि क्रमणश्चेव सीताशोकविनाशन: |
लक्ष्मणप्राणदाता च दश ग्रीवस्य दर्पहा ||
एवं द्वादश नामानि कपिन्द्रस्य महात्मन : |
स्वापकाले प्रबोधे च यात्राकाले च य: पठेत ||
तस्य सर्वभयं नास्ति रणे च विजयी भवेत् |
राजद्वारे गह्वरे च भयं नास्ति कदाचन ||
(आनन्दरामायण ८ |१३ | ८ - ११ )
उनका एक नाम तो हनुमान हे ही , दूसरा अन्जनीसुनु, तीसरा वायु पुत्र , चोथा महाबल, पांचवा रामेष्ट (रामजी केप्रिय ) छठा फाल्गुनसख (अर्जुन के मित्र ), सातवा पिंगाक्ष (भूरे नेत्र वाले ), आठवा अमितविक्रम , नवा उदधिक्रमण ( समुद्र को अति क्रमण करने वाले ), दसवा सीता शोक विनाशन (सीता जी के शोक को नाश करने वाले ), ग्यारवा लक्ष्मण प्राण दाता (लक्ष्मण को संजीवनी बूटी द्वारा जीवित करनेवाले ), और बारहवा नाम हें दशग्रीवदर्पहा (रावण के घमंड को दूर करनेवाले ) | ये बारह नाम श्री हनुमानजी के गुणों के द्योतक हें| श्री राम और सीता केप्रति जो सेवा - कार्य उनके द्वारा हुए हे उन सबकी और इन्ही नामोद्वारा संकेत हो जाते हे और यही श्री हनुमानस्तुति हे | इस स्तुति से मिलने वाले अनेको लाभ में सेना नायक श्री हनुमान के इन बारह नामो का जो रात्रि मेंसोने के समय या प्रात :काल उठनेपर अथवा यात्रा रम्भके समय पाठ करता हे, उस व्यक्ति के समस्त भय दूर होजाते हे | यह व्यक्ति युद्ध के मेदानमें, राज -दरबार में या भीषण संकट जहा - कही भी हो, उसे कोई भय नहीं होता | इस लिए श्री हनुमानको संकटमोचन भी कहा जाता हे |
जयश्रीराम
हनुमान न्जनी सुनुर्वायुपुत्रो महाबल : |
रामेष्ट : फाल्गुन सख : पिन्गाक्षोमितविक्रम ||
उदधि क्रमणश्चेव सीताशोकविनाशन: |
लक्ष्मणप्राणदाता च दश ग्रीवस्य दर्पहा ||
एवं द्वादश नामानि कपिन्द्रस्य महात्मन : |
स्वापकाले प्रबोधे च यात्राकाले च य: पठेत ||
तस्य सर्वभयं नास्ति रणे च विजयी भवेत् |
राजद्वारे गह्वरे च भयं नास्ति कदाचन ||
(आनन्दरामायण ८ |१३ | ८ - ११ )
उनका एक नाम तो हनुमान हे ही , दूसरा अन्जनीसुनु, तीसरा वायु पुत्र , चोथा महाबल, पांचवा रामेष्ट (रामजी केप्रिय ) छठा फाल्गुनसख (अर्जुन के मित्र ), सातवा पिंगाक्ष (भूरे नेत्र वाले ), आठवा अमितविक्रम , नवा उदधिक्रमण ( समुद्र को अति क्रमण करने वाले ), दसवा सीता शोक विनाशन (सीता जी के शोक को नाश करने वाले ), ग्यारवा लक्ष्मण प्राण दाता (लक्ष्मण को संजीवनी बूटी द्वारा जीवित करनेवाले ), और बारहवा नाम हें दशग्रीवदर्पहा (रावण के घमंड को दूर करनेवाले ) | ये बारह नाम श्री हनुमानजी के गुणों के द्योतक हें| श्री राम और सीता केप्रति जो सेवा - कार्य उनके द्वारा हुए हे उन सबकी और इन्ही नामोद्वारा संकेत हो जाते हे और यही श्री हनुमानस्तुति हे | इस स्तुति से मिलने वाले अनेको लाभ में सेना नायक श्री हनुमान के इन बारह नामो का जो रात्रि मेंसोने के समय या प्रात :काल उठनेपर अथवा यात्रा रम्भके समय पाठ करता हे, उस व्यक्ति के समस्त भय दूर होजाते हे | यह व्यक्ति युद्ध के मेदानमें, राज -दरबार में या भीषण संकट जहा - कही भी हो, उसे कोई भय नहीं होता | इस लिए श्री हनुमानको संकटमोचन भी कहा जाता हे |
जयश्रीराम
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