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Wednesday, April 27, 2011

कवी गंग

: गंग तरंग प्रवाह चले और कूप को नीर पीओ पीओ
अबे हृदे रघुनाथ बसे तो और को नाम लिओ लिओ
कर्म संजोग सुपात्र मिले तो कुपात्र को दान दिओ दिओ
कवी गंग कहे सुन शाह अकबर एक मुरख मित्र किओ किओ
:
गरज
गर्ज ही अर्जुन हिज्र भये अरु गर्ज ही गोविन्द धेन चरावे
गर्ज ही द्रोपदी दासी भई अरु गर्ज ही भीम रसोई पकावे
गर्ज बरी सब लोगन में अरु गर्ज बिना कोई आवे जावे
कवी गंग कहे सुन शाह अकबर गर्ज ही बीबी गुलाम रिजावे
: द्रव्य की महिमा
मात कहे मेरो पुत सपूत हे बेनी कहे मेरो सुंदिर भेया
तात कहे मेरो हे कुलदीपक लोग में नाम अधिक बढ़या
नारी कहे मेरो प्राण पति हे जिनके जाके में लेऊ बलेया
कवी गंग कहे सुन शाह अकबर सब के गांठ सफ़ेद रुपैया

४ : कर्म छुपे
दिन छुपे तथवार घटे ओर सूर्य छुपते घेर्णको छायो
गजराज छुपत हे सिंह को देखत चन्द्र छुपत अमावस आयो
पाप छुपे हरी नाम को जापत कुल छुपे हे कपूत को जायो
कवी गंग कहे सुन शाह अकबर कर्म न छुपेगो छुपो छुपायो
५ : विवेक
बाल से ख्याल बड़े से विरोध अगोचर नार से ना हसिये
अजा से लाज अगन से जोर अजाने नीर में ना धसिये
बेलकू नाथ घोड़ेकु लगाम हस्ती को अंकुश से कसिये
कवी गंग कहे सुन शाह अकबर कृर से दूर सदा बसिये
६ : चंचल प्रीत
चंचल नार की प्रीत न कीजे प्रीत किये दुःख हे भारी
कबु काल परे कबु आन बने नारी की प्रीत हे प्रेम कटारी
लोह को घाव दारू से मिटे अरु दिल को घाव न जाय बिसारी
कवी गंग कहे सुन शाह अकबर नारी की प्रीत अंगार से भारी
७ : भूख
भूख में राज को तेज सब घट गयो भूख में सिद्ध की बुद्धि हारी
भूख में कामिनी काम सो तज गयी भूख में तज गयो पुरुष नारी
भूख में और व्यव्हार नहीं रहत हे भूख में रहत कन्या कुमारी
कहत कवी गंग नहीं भजन बन पडत हे चार ही वेद से भूख न्यारी

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