या श्री: स्वयं सुकृतिनाम भवनेस्वलक्ष्मी : पापात्मनाम कृतधियां ह्र्दयेसू बुद्धि :|
श्रद्धा सताम कुलजनप्रभवस्य लज्जा ताम त्वां नता: स्म परिपालय देवी विश्वम ||
जिस प्रकार विष्णु और शिव एक हे , उसी प्रकार शक्ति भी उनसे अभिन्न हे |एक ही परम तत्त्व के विभिन्न नाम हे |शास्त्र में कहा हे
यथा शिव स्तथा दुर्गा या दुर्गा विष्णुरेव स:|
अत्र य: कुरुते भेदं स नरो मूढ़दुर्मति: ||
देवीविष्णुशिवादीनामेकस्तवं परिचिन्तयेत |
भेदकृन्नरकं याति रौरवं नात्र संशय: ||
(मुण्डमाला तन्त्र)
जेसे शिव हे, वेसे ही दुर्गा हे, और जो दुर्गा हे वही विष्णु हे | इनमे जो भेद मानता हे वह दुर्बुद्धि मनुष्य मुर्ख हे | देवी,विष्णु और शिव आदिमें एकत्व ही देखना चाहिये | जो इनमे भेद करता हे, वह नि :संदेह रौरवनरकमें जाता हे|
जिस प्रकार शिव और विष्णुको विभिन्न शास्त्रोंमें परब्रहम,परमात्मा ,सृष्टिकर्ता, सर्वव्यापी बतलाया हे, इसी प्रकारसे शक्तिको भी बतलाया हे | देवताओने एक बार जाकर भगवतीसे पुछा--
कासि त्वं महादेवी !
हे महादेवी ! आप कौन हे ? भगवतीने उतर दिया --
अहम् ब्रह्मरूपिणी, मत्त: प्रकृतिपुरुषात्मकम जगदुत्पनम |
( श्रुति )
में ब्रह्मरूपिणी हु , प्रकृति -पुरुषात्मक जगत मुझसे ही उत्पन्न हुआ हे |
श्री देवीभागवतमें कहा हे -
सदेक्त्वं न भेदोंस्ति सर्वदेव ममास्य च |
यो सो साहमहम यासो भेदोंस्ति मतिविभ्रमात ||
में और ब्रह्म दोनोंमें सदा एकत्व हे भेद कभी नहीं हे जो वह हे सो में हु , और जो में हु सो वह हे | भेद भ्रान्तिसे कल्पित हे, वस्तुत : नहीं हे
इस प्रकार असंख्य प्रमाण हे जिनसे भगवती का निर्गुण परब्रहमस्वरुप और उनका सगुण निराकार सृष्टिकर्ता स्वरुप सिद्ध हे| ये ही भगवती विभिन्न साकाररूपोंमें लीला करती हे | भगवतीके असंख्य रूप हे | इनमे नौ दुर्गा, दश महाविद्या आदि प्रसिद्ध हे |
नौ दुर्गा हे - शेलपुत्री , ब्रह्मचारिणी , चन्द्रघंटा , कुष्मांडा , स्कंदमाता , कात्यायनी , कालरात्रि , महागौरी और सिद्धिदात्री |
दश महाविद्या हे - काली, तारा , षोडशी (त्रिपुरसुंदरी ), भुवनेश्वरी (राजराजेश्वरी ,श्रीविद्या ,ललिता ),छिन्नमस्ता ,भेरवी,(त्रिपुर भेरवी ) , घुमावती (अलक्ष्मी ), बगलामुखी , मातंगी और कमला (लक्ष्मी ) | इनमे कालीके शिव हे महाकाल , तारा के अक्षोभ्य , षोडशीकेपंचवक्त्र , भुवनेश्वरीके त्रयम्बक , छिन्नमस्ताके कबंध , भेरवीके दक्षिणामूर्ति , बगलाके एक मुख महारुद्र , मातंगीके मतंग और कमलाके सदाशिव श्री विष्णु | घुमावती विधवा मानी गयी हे |
इन सबके अलग अलग ध्यान ,मंत्र ,यन्त्र ,कवच आदि हे |
तीन प्रधान महादेविया हे - महाकाली , महालक्ष्मी और महासरस्वती |
इनके बिज मंत्र क्रमश : इस प्रकार हे -
ॐ ऐं नम :
ॐ ह्रीं नम : (ओम ह्रीम नमह )
ॐ क्लीं नम :
यह बीज मंत्र और इन तीनो का मंत्र हे - ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे|यही प्रसिद्ध नवार्णमंत्र हे | मार्कडेय पुराण के तेरह अध्याय में श्री दुर्गा सप्तशती हे | इसमें भगवती शक्तिके स्वरुप,चरित्र ,उपासना ,और साधना ओ का बड़ा सुन्दर वर्णन हे | विधि पूर्वक दुर्गा सप्तशतीका पाठ, नवार्ण मंत्र का जाप , बिज मंत्रो के जाप पंचांग पुरश्चरण सहित करने से सारे मनोरथ सिद्ध होते हे | श्री भगवती की कृपा से अचला भक्ति और परमा शांति की प्राप्ति होती हे
सप्तशती के बारे में आगे फिर ज्यादा लिखेगे
ध्यान रखे : भगवती की आराधना किसी अनुभवी से जानकर करनी चाहिये |
No comments:
Post a Comment